________________
प्रथम शतक : उद्देशक - ९]
[ १५१
ण जाति, थेरा सामाइयस्स अट्ठ ण याणंति, थेरा पच्चक्खाणं ण याणंति, थेरा पच्चक्खाणस्स अट्ठ ण याणंति, थेरा संजमं ण याणंति, थेरा संजमस्स अट्ठ ण याणंति, थेरा संवरं ण याणंति, थेरा संवरस्स अट्ठ ण याणंति, थेरा विवेगं ण याणंति, थेरा विवेगस्स अट्ठ ण याति, थेरा विउस्सग्गं ण याणंति, थेरा विउस्सग्गस्स अट्ठ ण याणंति ।
[२१-१] उस काल (भगवान् पार्श्वनाथ के निर्वाण के लगभग २५० वर्ष पश्चात् ) और उस समय (भगवान् महावीर के शासनकाल) में पाश्र्वापत्यीय (पार्श्वनाथ की परम्परा के शिष्यानुशिष्य) कालास्यवेषिपुत्र नामक अनगार जहाँ (भगवान् महावीर के) स्थविर ( श्रुतवृद्ध शिष्य) भगवान् विराजमान थे, वहाँ गए। उनके पास आकर स्थविर भगवन्तों से उन्होंने इस प्रकार कहा—' हे स्थविरो! आप सामायिक को नहीं जानते, सामायिक के अर्थ को नहीं जानते; आप प्रत्याख्यान को नहीं जानते और प्रत्याख्यान के अर्थ को नहीं जानते; आप संयम को नहीं जानते और संयम के अर्थ को नहीं जानते; आप संवर को नहीं जानते, और संवर के अर्थ को नहीं जानते; हे स्थविरो! आप विवेक को नहीं जानते और विवेक के अर्थ को नहीं जानते हैं, तथा आप व्युत्सर्ग को नहीं जानते और न व्युत्सर्ग के अर्थ को जानते हैं ।'
२] तए णं ते थेरा भगवंतो कालासवेसियपुत्तं अणगारं एवं वयासी जाणामो णं अज्जो! सामाइयं, जाणामो णं अज्जो ! सामाइयस्स अट्ठं जाव जाणामो णं अज्जो ! विउस्सग्गस्स अट्ठं ।
[२१-२] तब उन स्थविर भगवन्तों ने कालास्यवेषिपुत्र अनगार से इस प्रकार कहा—' हे आर्य ! हम सामायिक को जानते हैं, सामायिक के अर्थ को भी जानते हैं, यावत् हम व्युत्सर्ग को जानते हैं और व्युत्सर्ग के अर्थ को भी जानते हैं ।'
[ ३ ] तए णं से कालासवेसियपुत्ते अणगारे ते थेरे भगवंते एवं वयासी जति णं जो! तु जाणह सामाइयं, जाणह सामाइयस्स अट्ठे जाव जाणह विउस्सग्गस्स अट्ठे किं अज्जो ! सामाइए ? किं भे अज्जो ! सामाइयस्स अट्ठे ? जाव किं भे विउस्सग्गस्स अट्ठे ?
[२१-३ प्र.] उसके पश्चात् कालास्यवेषिपुत्र अनगार ने उन स्थविर भगवन्तों से इस प्रकार कहा— आर्यो ! यदि आप सामायिक को (जानते हैं) और सामायिक के अर्थ को जानते हैं, यावत् व्युत्सर्ग को एवं व्युत्सर्ग के अर्थ को जानते हैं, तो बतलाइये कि ( आपके मतानुसार) सामायिक क्या है और सामायिक का अर्थ क्या है ? यावत्.....व्युत्सर्ग क्या है और व्युत्सर्ग का अर्थ क्या है ?.
[४] तए णं थेरा भगवंतो कालासवेसियपुत्तं अणगारं एवं वयासी—आया णे अज्जो! सामाइए, आया णे अज्जो ! सामाइयस्स अट्ठे जाव विउस्सग्गस्स अट्ठे ।
[२१-४ उ.] तब उन स्थविर भगवन्तों ने इस प्रकार कहा कि हे आर्य ! हमारी आत्मा सामायिक है, हमारी आत्मा सामायिक का अर्थ है; यावत् हमारी आत्मा व्युत्सर्ग है, हमारी आत्म ही व्युत्सर्ग का अर्थ है ।
[ ५ ] तए णं से कालासवेसियपुत्ते अणगारे थेरे भगवंते एवं वयासी जति भे अज्जो ! आया सामाइए, आया सामाइयस्स अट्ठे एवं जाव आया विउस्सग्गस्स अट्ठे, अवहट्टु कोहमाण- माया-लोभे किमठ्ठे अज्जो ! गरहह ?