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________________ १५०] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र तं समयं इहभवियाउयं पकरेइ; इहभवियाउयस्स पकरणताए णो परभवियाउयं पकरेति, परभवियाउयस्स पकरणताए णो इहभवियाउयं पकरेति। एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एगं आउयं पकरेति, तं०-इहभवियाउयं वा, परभवियाउयं वा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति भगवं गोयमे जाव विहरति। [२० प्र.] भगवन्! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, इस प्रकार विशेषरूप से कहते हैं, इस प्रकार बताते हैं और इस प्रकार की प्ररूपणा करते हैं कि एक जीव एक समय में दो आयुष्य करता (बाँधता) है। वह इस प्रकार—इस भव का आयुष्य और परभव का आयुष्य। जिस समय इस भव का आयुष्य करता है, उस समय परभव का आयुष्य करता है और जिस समय परभव का आयुष्य करता है, उस समय इस भव का आयुष्य करता है। इस भव का आयुष्य करने से परभव का आयुष्य करता है और परभव का आयुष्य करने से इस भव का आयुष्य करता है। इस प्रकार एक जीव एक समय में दो आयुष्य करता है इस भव का आयुष्य और परभव का आयुष्य। भगवन ! क्या यह इसी प्रकार है? [२० उ.] गौतम! अन्यतीर्थिक जो इस प्रकार कहते हैं, यावत् इस भव का आयुष्य और परभव का आयुष्य (करता है); उन्होंने जो ऐसा कहा है, वह मिथ्या कहा है। हे गौतम! मैं इस प्रकार कहता हूँ, यावत् प्ररूपणा करता हूँ कि-एक जीव एक समय में एक आयुष्य करता है और वह या तो इस भव का आयुष्य करता है अथवा परभव का आयुष्य करता है। जिस समय इस भव का आयुष्य करता है, उस समय परभव का आयुष्य नहीं करता और जिस समय परभव का आयुष्य करता है, उस समय इस भव का आयुष्य नहीं करता। तथा इस भव का आयुष्य करने से परभव का आयुष्य और परभव का आयुष्य करने से इस भव का आयुष्य नहीं करता। इस प्रकार एक जीव एक समय में एक आयुष्य करता है-इस भव का आयुष्य अथवा परभव का आयुष्य। 'हे भगवन्! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है; ऐसा कहकर भगवान् गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन आयुष्यबन्ध के सम्बन्ध में अन्यमतीय प्रवं भगवदीय प्ररूपणा–प्रस्तुत सूत्र में अन्यमतमान्य आयुष्यबन्ध की प्ररूपणा प्रस्तुत करके भगवान् के द्वारा प्रतिपादित सैद्धान्तिक प्ररूपणा प्रदर्शित की गई है। आयुष्य करने का अर्थ यहाँ आयुष्य बाँधना है। दो आयुष्यबन्ध क्यों नहीं?—यद्यपि आयुष्यबन्ध के समय जीव इस भव के आयुष्य को वेदता है, और परभव के आयुष्य को बांधता है, किन्तु उत्पन्न होते ही या इसी भव में एक साथ दो आयुष्यों का बंध नहीं करता; अन्यथा, इस भव में किये जाने वाले दान-धर्म आदि सब व्यर्थ हो जायेंगे। पाश्र्वापत्यीय कालस्यवेषिपुत्र का स्थविरों द्वारा समाधान और हृदयपरिवर्तन २१.१] तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज्जे कालासवेसियपुत्ते णामं अणगारे जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते एवं वयासी थेरा सामाइयं १. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक ९८-९९
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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