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________________ प्रथम शतक : उद्देशक-९] [१४७ १०.[१] कण्हलेसा णं भंते! किं गरुया, जाव अगरुयलहुया ? गोयमा! नो गरुया, नो लहुया, गरुयलहुया वि, अगरुयलहुया वि। [१०-१ प्र.] भगवन्! कृष्णलेश्या क्या गुरु है, लघु है ? या गुरुलघु है अथवा अगुरुलघु है? [१०-१ उ.] गौतम! कृष्णलेश्या गुरु नहीं है, लघु नहीं है, किन्तु गुरुलघु है और अगुरुलघु भी [२] से केणढेणं? गोयमा! दव्वलेसं पडुच्च ततियपदेणं, भावलेसं पडुच्च चउत्थपदेणं। [१०-२ प्र.] भगवन्! ऐसा कहने का क्या कारण है ? [१०-२ उ.] गौतम! द्रव्यलेश्या की अपेक्षा तृतीय पद से (अर्थात्-गुरुलघु) जानना चाहिए, और भावलेश्या की अपेक्षा चौथे पद से (अर्थात् अगुरुलघु) जानना चाहिए। [३] एवं जाव सुक्कलेसा। [१०-३] इसी प्रकार शुक्ललेश्या तक जानना चाहिए। ११. दिट्ठी-दसण-नाण-अण्णाण-सणाओ चउत्थपदेणं णेतव्वाओ। [११] दृष्टि, दर्शन, ज्ञान, अज्ञान और संज्ञा को भी चतुर्थ पद से (अगुरुलघु) जानना चाहिए। १२. हेट्ठिल्ला चत्तारि सरीरा नेयव्वा ततियएणं पदेणं। कम्मयं चउत्थएणं पदेणं। [१२] आदि के चारों शरीरों-औदारिक, वैक्रिय, आहारक और तैजस शरीर को तृतीय पद से (गुरुलघु) जानना चाहिए, तथा कार्मण शरीर को चतुर्थ पदं से (अगुरुलघु) जानना चाहिए। १३. मणजोगो वइजोगो चउत्थएणं पदेणं। कायजोगो ततिएणं पदेणं।। [१३] मनोयोग और वचनयोग को चतुर्थ पद से (अगुरुलघु) और काययोग को तृतीय पद से (गुरुलघु) जानना चाहिए। १४. सागारोवओगो अणागारोवओगो चउत्थएणं पदेणं। [१४] साकारोपयोग और अनाकारोपयोग को चतुर्थ पद से जानना चाहिए। १५. सव्वदव्वा सव्वपदेसा सव्वपज्जवा जहा पोग्गलत्थिकाओ (सु. ८)। [१५] सर्वद्रव्य, सर्वप्रदेश और सर्वपर्याय पुद्गलास्तिकाय के समान समझना चाहिए। १६. तीतद्धा अणागतद्धा सव्वद्धा चउत्थेणं पदेणं। [१६] अतीतकाल, अनागत (भविष्य) काल और सर्वकाल चौथे पद से अर्थात् अगुरुलघु जानना चाहिए। विवेचन-पदार्थों की गुरुता-लघुता आदि का चतुर्भंग की अपेक्षा से विचार प्रस्तुत तेरह सूत्रों (सू.४ से १६ तक) में अवकाशान्तर, घनवात, तनुवात आदि विविध पदार्थों तथा चौबीस दण्डक के जीवों, धर्मास्तिकाय आदि पंचास्तिकाय, लेश्या आदि की दृष्टि में गुरुता, लघुता, गुरुलघुता और अगुरुलघुता का विचार प्रस्तुत किया गया है।
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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