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________________ १४६] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [६-१ प्र.] भगवन्! नारक जीव गुरु हैं, लघु हैं, गुरु-लघु हैं या अगुरुलघु हैं ? [६-१ उ.] गौतम! नारक जीव गुरु नहीं है, लघु नहीं, किन्तु गुरुलघु हैं और अगुरुलघु भी हैं। [२]से केणढे णं? गोयमा! वेउव्विय-तेयाइं पडुच्च नो गरुया, नो लहुया, गरुयलहुया, नो अगरुयलहुया, जीवं च कम्मणं च पडुच्च नो गरुया, नो लहुया, नो गरुयलहुया, अगरुयलहुया। से तेणढेणं०। [६-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? [६-२ उ.] गौतम! वैक्रिय और तैजस शरीर की अपेक्षा नारक जीव गुरु नहीं हैं, लघु नहीं हैं, अगुरुलघु भी नहीं हैं; किन्तु गुरु-लघु हैं। किन्तु जीव और कार्मणशरीर की अपेक्षा नारक जीव गुरु नहीं हैं, लघु भी नहीं हैं, गुरु-लघु भी नहीं हैं, किन्तु अगुरुलघु हैं । इस कारण हे गौतम! पूर्वोक्त कथन किया गया है। [३] एवं जाव वेमाणिया। नवरं णाणत्तं जाणियव्वं सरीरेहिं। [६-३] इसी प्रकार वैमानिकों (अन्तिम दण्डक) तक जानना चाहिए, किन्तु विशेष यह है कि शरीरों में भिन्नता कहना चाहिए। ७. धम्मत्थिकाये जाव जीवत्थिकाये चउत्थपदेणं। [७] धर्मास्तिकाय से लेकर यावत् (अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और) जीवास्तिकाय तक चौथे पद से (अगुरुलघु) जानना चाहिए। ८. पोग्गलत्थिकाए णं भंते! किं गरुए, लहुए, गरुयलहुए, अगरुयलहुए ? गोयमा! णो गरुए, नो लहुए, गरुयलहुए वि, अगरुयलहुए वि । से केणठेणं ? गोयमा! गरुयलहुयदव्वाई पडुच्च नो गरुए, नो लहुए, गरुयलहुए, नो अगरुयलहुए। अगरुयलहुयदव्वाइं पडुच्च नो गरुए, नो लहुए, नो गरुयलहुए, अगरुयलहुए। [८ प्र.] भगवन्! पुद्गलास्तिकाय क्या गुरु है, लघु है, गुरुलघु है अथवा अगुरुलघु है ? [८ उ.] गौतम! पुद्गलास्तिकाय न गुरु है न लघु है किन्तु गुरुलघु है और अगुरुलघु भी है। [प्र.] भगवन्! इसका क्या कारण है? [उ.] गौतम! गुरुलघुद्रव्यों की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय गुरु नहीं है, लघु नहीं है, किन्तु गुरुलघु है, अगुरुलघु नहीं है। अगुरुलघु द्रव्यों की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय गुरु नहीं, लघु नहीं है, न गुरु-लघु है, किन्तु अगुरुलघु है। ९. समया कम्माणि य चउत्थपदेणं। [९] समयों और कर्मों (कार्मण शरीर) को चौथे पद से जानना चाहिए अर्थात् समय और कार्मण शरीर अगुरुलघु हैं।
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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