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प्रथम शतक : उद्देशक-७]
[१३१ से केणटेणं?
गोयमा! से णं सन्नी पंचिंदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्तए तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा निसम्म ततो भवति संवेगजातसड्ढे तिव्वधम्माणुरागरत्ते, से णं जीवे धम्मकामए पुण्णकामए सग्गकामए मोक्खकामए, धम्मकंखिए पुण्णकंखिए सग्गकंखिए मोक्खकंखिए, धम्मपिवासिए पुण्णपिवासिए सग्गपिवासिए मोक्खपिवासिए, तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदज्झवसिते तत्तिव्वज्झवसाणे तदट्ठोवउत्ते तदप्पिातकरणे तब्भावणाभाविते एतंसि णं अंतरंसि कालं करेज्ज देवलोएसु उववज्जति; से तेणटेणं गोयमा!।
[२०-१ प्र.] भगवन्! गर्भस्थ जीव क्या देवलोक में जाता है ? [२०-१ उ.] हे गौतम! कोई जीव जाता है, और कोई नहीं जाता। [२०-२ प्र.] भगवन्! इसका क्या कारण है ?
[२०-२ उ.] गौतम! गर्भ में रहा हुआ संज्ञी पंचेन्द्रिय और सब पर्याप्तियों से पर्याप्त जीव, तथारूप श्रमण या महान के पास एक भी आर्य और धार्मिक सुवचन सुन कर, अवधारण करके शीघ्र ही संवेग से धर्मश्रद्धालु बनकर, धर्म में तीव्र अनुराग से रक्त होकर, वह धर्म का कामी, पुण्य का कामी, स्वर्ग का कामी, मोक्ष का कामी, धर्माकांक्षी, पुण्याकांक्षी, स्वर्ग का आकांक्षी, मोक्षाकांक्षी तथा धर्मपिपासु, पुण्यपिपासु, स्वर्गपिपासु एवं मोक्षपिपासु, उसी में चित्त वाला, उसी में मन वाला, उसी में आत्मपरिणाम वाला, उसी में अध्यवसिंत, उसी में तीव्र प्रयत्नशील, उसी में सावधानतायुक्त, उसी के लिए अर्पित होकर क्रिया करने वाला, उसी की भावनाओं से भावित (उसी के संस्कारों से संस्कारित) जीव ऐसे ही अन्तर (समय) में मृत्यु को प्राप्त हो तो देवलोक में उत्पन्न होता है। इसलिए हे गौतम! कोई जीव देवलोक में उत्पन्न होता है और कोई नहीं उत्पन्न होता।
२१. जीवे णं भंते! गब्भगए समाणे उत्ताणए वा पासिल्लए वा अंबुखुज्जए वा अच्छेज्ज वा चिट्ठज्जा वा निसीएज्ज वा तुयमुज्ज वा, मातुए सुवमाणीए सुवति, जागरमाणीए जागरति, सुहियाए सुहिते भवइ, दुहिताए दुहिए भवति ?
हंता गोयमा! जीवे णं गब्भगए समाणे जाव दुहियाए भवति।
[२१ प्र.] भगवन्! गर्भ में रहा हुआ जीव क्या चित्त-लेटा हुआ (उत्तानक) होता है, या करवट वाला होता है, अथवा आम के समान कुबड़ा होता है, या खड़ा होता है, बैठा होता है या पड़ा हुआ (सोता हुआ) होता है; तथा माता जब सो रही हो तो सोया होता है, माता जब जागती हो तो जागता है, माता के सुखी होने पर सुखी होता है, एवं माता के दुःखी होने पर दुःखी होता है ?
[२१ उ.] हां, गौतम ! गर्भ में रहा हुआ जीव... यावत्-जब माता दुःखित हो तो दुःखी होता
२२. अहे णं पसवणकालसमयंसि सीसेण वा पाएहिं वा आगच्छति सममागच्छइ तिरियमागच्छइ विणिहायमावज्जति। वण्णवज्झाणि य से कम्माइं बद्धाइं पुट्ठाइं निहत्ताई