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________________ १३०] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [१८ प्र.] भगवन्! माता और पिता के अंग सन्तान के शरीर में कितने काल तक रहते हैं ? [१८ उ.] गौतम! संतान का भवधारणीय शरीर जितने समय तक रहता है, उतने समय तक वे अंग रहते हैं; और जब भवधारणीय शरीर समय-समय पर हीन (क्षीण) होता हुआ अन्तिम समय में नष्ट हो जाता है; तब माता-पिता के वे अंग भी नष्ट हो जाते हैं। १९.[१] जीवे णं भंते! गब्भगते समाणे नेरइएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा! अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा। [१९-१ प्र.] भगवन् ! गर्भ में रहा हुआ जीव क्या नारकों में उत्पन्न होता है ? [१९-१ उ.] गौतम! कोई उत्पन्न होता है और कोई नहीं उत्पन्न होता। [२] से केणटेणं? गोयमा! सेणं सन्नी पंचिंदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्तए वीरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए पराणीयं आगयंसोच्चा निसम्म पदेसे निच्छुभति,२ वेउब्वियसमुग्धाएणंसमोहण्णइ, वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णित्ता चाउरंगिणिं सेणं विउव्वइ, चाउरंगिणिं सेणं विउव्वेत्ता चाउरंगिणीए सेणाए पराणीएणं सद्धिं संगाम संगामेइ, से णं जीवे अत्थकामए रज्जकामए भोगकामए कामकामए, अत्थकंखिए रज्जकंखिए भोगकंखिए कामकंखिए, अत्थपिवासिते रज्जपिवासिते भोगपिवासिए कामपिवासिते, तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदझवसिए तत्तिव्वज्झवसाणे तदट्ठोवउत्ते तदप्पिकरणे तब्भावणाभाविते एतंसिणं अंतरंसि कालंकरेज्ज नेरतिएसु उववज्जइसे तेणटेणं गोयमा! जाव अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा। [१९-२ प्र.] भगवन् ! इसका क्या कारण है ? [१९-२ उ.] गौतम! गर्भ में रहा हुआ संज्ञी पंचेन्द्रिय और समस्त पर्याप्तियों से पर्याप्त (परिपूर्ण) जीव, वीर्यलब्धि द्वारा, वैक्रियलब्धि द्वारा शत्रुसेना का आगमन सुनकर, अवधारण (विचार) करके अपने आत्मप्रदेशों को गर्भ से बाहर निकालता है, बाहर निकाल कर वैक्रियसमुद्घात से समवहत होकर चतुरंगिणी सेना की विक्रिया करता है। चतुरंगिणी सेना की विक्रिया करके उस सेना से शत्रुसेना के साथ युद्ध करता है। वह अर्थ (धन) का कामी, राज्य का कामी, भोग का कामी, काम का कामी, अर्थाकांक्षी, राज्याकांक्षी, भोगाकांक्षी, कामाकांक्षी, (अर्थादि का लोलुप), तथा अर्थ का प्यासा, राज्य का प्यासा, भोगपिपासु, एवं कामपिपासु, उन्हीं में चित्त वाला, उन्हीं में मन वाला, उन्हीं में आत्मपरिणाम वाला, उन्हीं में अध्यवसित, उन्हीं में प्रयत्नशील, उन्हीं में सावधानता-युक्त, उन्हीं के लिए क्रिया करने वाला, और उन्हीं भावनाओं से भावित (उन्हीं संस्कारों में ओतप्रोत), यदि उसी (समय) के अन्तर में (दौरान) मृत्यु को प्राप्त हो तो वह नरक में उत्पन्न होता है। इसलिए हे गौतम! यावत्-कोई जीव नरक में उत्पन्न होता है और कोई नहीं उत्पन्न होता। २०. जीवे णं भंते! गब्भगते समाणे देवलोगेसु उववज्जेज्जा ? गोयमा! अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए नो उववज्जेजा ।
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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