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प्रथम शतक : उद्देशक-७]
[१२७ की आयु भोगता है; तो हे भगवन् ! उसकी वह आयु तिर्यञ्च की समझी जाए या मनुष्य की आयु समझी जाए?
[९.उ.] हाँ, गौतम! उस महा ऋद्धि वाले देव का यावत् च्यवन (मृत्यु) के पश्चात् तिर्यञ्च का आयुष्य अथवा मनुष्य का आयुष्य समझना चाहिए।
विवेचन देव का च्यवनानन्तर आयुष्यप्रतिसंवेदन-निर्णय प्रस्तुत सूत्र में देवगति से च्युत होने के बाद तिर्यञ्च या मनुष्य गति के आयुष्य भोग के संबंध में उठाये गए प्रश्न का समाधान है। चूंकि देव मर कर देवगति या नरकगति में नहीं जाता, इसलिए तिर्यञ्च या मनुष्य जिस गति में भी जाता है, वहाँ की आयु भोगता है। गर्भगतजीव-सम्बन्धी विचार
१०. जीवे णं भंते ! गब्भं वक्कममाणे किं सइंदिए वक्कमति ? अणिदिए वक्कमइ ? गोयमा! सिय सइंदिए वक्कमइ, सिय अणिदिए वक्कमइ। से केणठेणं?
गोयमा! दव्विदियाइं पडुच्च अणिदिए वक्कमति, भाविंदियाइं पडुच्च सइंदिए वक्कमति, से तेणढेणं ।
[१०-१ प्र.] भगवन्! गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव, क्या इन्द्रियसहित उत्पन्न होता है अथवा इन्द्रियरहित उत्पन्न होता है ?
[१०-१ उ.] गौतम! इन्द्रियसहित भी उत्पन्न होता है, इन्द्रियरहित भी, उत्पन्न होता है। [१०-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ?
[१०-२ उ.] गौतम! द्रव्येन्द्रियों की अपेक्षा वह बिना इन्द्रियों का उत्पन्न होता है और भावेन्द्रियों की अपेक्षा इन्द्रियों सहित उत्पन्न होता है, इसलिए हे गौतम! ऐसा कहा गया है।
११. जीवे णं भंते! गब्भं वक्कममाणे किं ससरीरी वक्कमइ ? असरीरी वक्कमइ ? गोयमा! सिय ससरीरी वक्कमति, सिय असरीरी वक्कमति। से केणठेणं?
गोयमा! ओरालिय-वेउव्विय-आहारयाई पडुच्च असरीरी वक्कमति, तेया-कम्माइं पडुच्च ससरीरी वक्कमति; से तेणठेणं गोयमा !
[११-१ प्र.] भगवन्! गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव, क्या शरीर-सहित उत्पन्न होता है, अथवा शरीररहित उत्पन्न होता है ?
[११-१उ.] गौतम ! शरीरसहित भी उत्पन्न होता है, शरीररहित भी उत्पन्न होता है। [११-२ प्र.] भगवन् ! यह आप किस कारण से कहते हैं ?
[११-२ उ.] गौतम! औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीरों की अपेक्षा शरीररहित उत्पन्न होता है तथा तैजस, कार्मण शरीरों की अपेक्षा शरीर सहित उत्पन्न होता है। इस कारण गौतम! ऐसा कहा है।