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________________ ११८] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र के आधार पर वायु (तनुवात) टिका हुआ है; वायु के आधार पर उदधि है; उदधि के आधार पर पृथ्वी है, त्रस और स्थावर जीव पृथ्वी के आधार पर हैं; अजीव जीवों के आधार पर टिके हैं; (सकर्मक जीव) कर्म के आधार पर हैं; अजीवों को जीवों ने संग्रह कर रखा है, जीवों को कर्मों ने संग्रह कर रखा है। [२] से केणढेणं भंते! एवं वुच्चति अट्ठविहा जाव जीवा कम्मसंगहिता? गोयमा! से जहानामए केइ पुरिसे वत्थिमाडोवेति, वत्थिमाडोवित्ता उप्पिं सितं बंधति, बंधित्ता मज्झे णं गठिं बंधति, मज्झे गंठिंबंधित्ता उवरिल्लं गंठिं मुयति, मुइत्ता उवरिल्लं देसं वामेति, उवरिल्लं देसं वामेत्ता उवरिल्लं आउयायस्स पूरेति, पूरित्ता उप्पि सितं बंधति, बंधित्ता मज्झिल्लं गंठिं मुयति।से नूणं गोतमा! से आउयाए तस्स वाउययस्स उप्पि उवरितले चिट्ठति ? हंता, चिट्ठति। से तेणटेणं जाव जीवा कम्मसंगहिता। [२५-२ प्र.] भगवन्! इस प्राकर कहने का क्या कारण है कि लोक की स्थिति आठ प्रकार की है और यावत् जीवों को कर्मों ने संग्रह कर रखा है ? [२५-२ उ.] गौतम! जैसे कोई पुरुष चमड़े की मशक को वायु से (हवा भर कर) फुलावे; फिर उस मशक का मुख बांध दे, तत्पश्चात् मशक के बीच के भाग में गांठ बांधे; फिर मशक का मुँह खोल दे और उसके भीतर की हवा निकला दे; तदनन्तर उस मशक के ऊपर के (खाली) भाग में पानी भरे; फिर मशक का मुख बंद कर दे, तत्पश्चात् उस मशक की बीच की गांठ खोल दे, तो हे गौतम! वह भरा हुआ पानी क्या उस हवा के ऊपर ही ऊपर के भाग में रहेगा? (गौतम) हाँ, भगवन्! रहेगा। (भगवान् -) हे गौतम! इसीलिए मैं कहता हूं कि यावत् कर्मों को जीवों ने संग्रह कर रखा है। [३] से जहा वा केई पुरिसे वत्थिमाडोवेति, आडोवित्ता कडीए बंधति, बंधित्ता अत्थाहमतारमपोरुसियंसि उदगंसि आगाहेज्जा। से नूणं गोतमा! से पुरिसे तस्स आउयायस्स उवरिमतले चिट्ठति ? हंता चिट्ठति। एवं वा अट्ठविहा लोयट्ठिती पण्णत्ता जाव जीवा कम्मसंगहिता। [२५-३ उ.] अथवा हे गौतम! कोई पुरुष चमड़े की उस मशक को हवा से फुला कर अपनी कमर पर बांध ले, फिर वह पुरुष अथाह, दुस्तर और पुरुष-परिमाण से (जिसमें पुरुष मस्तक तक डूब जाए, उससे) भी अधिक पानी में प्रवेश करे; तो हे गौतम! वह पुरुष पानी की ऊपरी सतह पर ही रहेगा? (गौतम-) हाँ, भगवन् ! रहेगा। (भगवान्-) हे गौतम! इसी प्रकार लोक की स्थिति आठ प्रकार की कही गई है, यावत् कर्मों
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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