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प्रथम शतक : उद्देशक-५] .
[९३ नारकों के क्रोधोपयुक्तादि निरूपणपूर्वक प्रथम स्थितिस्थानद्वार.
७. इमीसे णं भंते! रतणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससतसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि नेरतियाणं केवतिया ठितिठाणा पण्णत्ता ?
___गोयमा! असंखेज्जा ठितिठाणा पण्णत्ता।तं जहा-जहन्निया ठिती, समयाहिया जहन्निया ठिई, दुसमयाहिया जहनिया ठिती जाव असंखेजसमयाहिया जहन्निया ठिती, तप्पाउग्गुक्कोसिया ठिती।
_ [७ प्र.] भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में एक-एक नारकावास में रहने वाले नारक जीवों के कितने स्थिति-स्थान कहे गए हैं ? अर्थात् एक-एक नारकावास के नारकों की कितनी उम्र है ?
[७ उ.] गौतम! उनके असंख्य स्थान कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं-जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है, वह एक समय अधिक, दो समय अधिक-इस प्रकार यावत् जघन्य स्थिति असंख्यात समय अधिक है तथा उसके योग्य उत्कृष्ट स्थिति भी। (ये सब मिलकर असंख्यात स्थिति-स्थान होते हैं।) .
८. इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससतसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि जहनियाए ठितीए वट्टमाणा नेरइया किं कोधोवउत्ता, माणोवउत्ता, मायोवउत्ता, लोभोवउत्ता?
___ गोयमा! सव्वे वि ताव होज्जा कोहोवउत्ता १, अहवा कोहोवउत्ता य माणोवउत्ते य २, अहवा कोहोवउत्ता य, माणोवउत्ता य ३, अहवा कोहोवउत्ता य मायोवउत्ते य ४, अहवा कोहोवउत्ता य मायोवउत्ता य ५, अहवा कोहोवउत्ता य लोभोवउत्ते य ६, अहवा कोहोवउत्ता य लोभोवउत्ता य ७। अहवा कोहोवउत्ता य माणोवउत्ते य मायोवउत्ते य १, कोहोवउत्ता य माणोवउत्ते यमायोवउत्ता य २,कोहोवउत्ता यमाणोवउत्ता यमायोवउत्ते य३,कोहोवउत्ता य माणोवउत्ता य मायाउवउत्ता य ४। एवं कोह-माण-लोभेण वि चउ ४। एवं कोह-मायालोभेण विचउ ४, एवं १२।पच्छा माणेण मायाए लोभेण य कोहो भइयव्वो, ते कोहं अमुंचता ८। एवं सत्तावीसं भंगा णेयव्वा।
[८ प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से एक-एक नारकावास में कम से कम (जघन्य) स्थिति में वर्तमान नारक क्या क्रोधोपयुक्त हैं, मानोपयुक्त हैं, मायोपयुक्त हैं अथवा लोभोपयुक्त हैं ?
[८ उ.] गौतम ! वे सभी क्रोधोपयुक्त होते हैं १, अथवा बहुत से नारक क्रोधोपयुक्त और एक नारक मानोपयुक्त होता है २, अथवा बहुत से क्रोधोपयुक्त और बहुत-से मानोपयुक्त होते हैं ३, अथवा बहुत से क्रोधोपयुक्त और एक मायोपयुक्त होते हैं ४, अथवा बहुत-से क्रोधोपयुक्त और बहुत-से मायोपयुक्त होते हैं ५, अथवा बहुत-से क्रोधोपयुक्त और एक लोभोपयुक्त होता है ६, अथवा बहुत-से क्रोधोपयुक्त और बहुत-से लोभोपयुक्त होते हैं ७ । अथवा बहुत से क्रोधोपयुक्त, एक मानोपयुक्त और एक मायोपयुक्त होता है १, बहुत-से क्रोधोपयुक्त, एक मानोपयुक्त और बहुत-से मायोपयुक्त होते हैं