________________
९२]
और उत्तरवर्ती दोनों के ७६-७६ लाख आवास कहे गये हैं ।)
[ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
४. केवतिया णं भंते! पुढविक्काइयावाससतसहस्सा पण्णत्ता ?
गोयमा ! असंखेज्जा पुढविक्काइयावाससयसहस्सा पण्णत्ता जाव असंखिज्जा जोदिसियविमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता ।
[४ प्र.] भगवन्! पृथ्वीकायिक जीवों के कितने लाख आवास कहे गए हैं ?
[४ उ.] गौतम! पृथ्वीकायिक जीवों के असंख्यात लाख आवास कहे गए हैं। इसी प्रकार (पृथ्वीकाय से लेकर) यावत् ज्योतिष्क देवों तक के असंख्यात लाख विमानावास कहे गए हैं। ५. सोहम्मे णं भंते! कप्पे कति विमाणावाससतसहस्सा पण्णत्ता ? गोयमा ! बत्तीसं विमाणावाससतसहस्सा पण्णत्ता । एवं
बत्तीसऽट्ठावीसा बारस अट्ठ चउरो सतसहस्सा । पण्णा चत्तालीसा छच्च सहस्सा सहस्सारे ॥ ४ ॥ आणय-पाणयकप्पे चत्तारि सताऽऽरण उच्चए तिण्णि । सत्त विमाणसताइं चउसु वि एएसु कप्पेसुं ॥५॥ एक्कारसुत्तरं हेट्ठिमेसु सत्तुत्तरं च मज्झिमए । सतमेगं उवरिमए पंचेव अत्तरविमाणा ॥ ६॥ [५ प्र.] भगवन्! सौधर्मकल्प में कितने विमानावास कहे गए हैं ?
[५ उ.] गौतम ! वहाँ बत्तीस लाख विमानावास कहे गए हैं। इस प्रकार क्रमशः बत्तीस लाख, अट्ठाईस लाख, बारह लाख, आठ लाख, चार लाख, पचास हजार तथा चालीस हजार, विमानावा जानना चाहिए। सहस्रार कल्प में छह हजार विमानावास हैं । आणत और प्राणत कल्प में चार सौ, आरण और अच्युत में तीन सौ इस तरह चारों में मिलकर सात सौ विमान हैं। अधस्तन (निचले ) ग्रैवेयक त्रिक में एक सौ ग्यारह, मध्यम (बीच के) ग्रैवेयक त्रिक में एक सौ सात और ऊपर के ग्रैवेयक त्रिक में एक विमानावास हैं। अनुत्तर विमानावास पांच ही हैं।
विवेचन - चौबीस दण्डकों की आवास- संख्या का निरूपण - प्रस्तुत पांच सूत्रों में नरक पृथ्वियों से लेकर पंच अनुत्तर विमानवासी देवों तक के आवासों की संख्या के सम्बन्ध में प्रतिपादन किया गया है।
६. पुढवि द्विति १ ओगाहण २ सरीर ३ संघयणमेव ४ संठाणे ५ ।
लेसा ६ दिट्ठी ७ णाणे ८ जोगुवओगे ९-१० य दस ठाणा ॥ १४॥
अर्थाधिकार
[सू. ६] पृथ्वी (नरक भूमि) आदि जीवावासों में १. स्थिति, २. अवगाहना, ३. शरीर, ४ . संहनन, ५. संस्थान, ६. लेश्या, ७. दृष्टि, ८. ज्ञान, ९. योग और १० उपयोग इन दस स्थानों (बोलों) पर विचार करना है ।