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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र २, बहुत-से क्रोधोपयुक्त, बहुत-से मोनोपयुक्त और एक मोयोपयुक्त होता है ३, बहुत-से क्रोधोपयुक्त, बहुत मानोपयुक्त और बहुत मायोपयुक्त होते हैं ४, इसी तरह क्रोध, मान और लोभ, (यों त्रिक्संयोग) के चार भंग, क्रोध, माया और लोभ, (यों त्रिक्संयोग) के भी चार-भंग कहने चाहिए। फिर मान, माया और लोभ के साथ जोड़ने से चतुष्क-संयोगी आठ भंग कहने चाहिए। इसी तरह क्रोध को नहीं छोड़ते हुए (चतुष्कसंयोगी ८ भंग होते हैं) कुल २७ भंग समझ लेने चाहिए।
९. इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि समयाधियाए जहन्नट्ठितीए वट्टमाणा नेरइया कि कोधोवउत्ता, माणोवउत्ता, मायोवउत्ता लोभोवउत्ता?
__ गोयमा! कोहोवउत्ते य माणोवउत्ते य मायोवउत्ते म लोभोवउत्ते य ४। कोहोवउत्ता य माणोवउत्ता य मायोवउत्ता य लोभोवउत्ता य ८। अहवा कोहोवउत्ते य माणोवउत्ते य १०, अहवा कोहोवउत्ते यमाणोवउत्ता य १२, एवं असीति भंगा नेयव्वा एवं जाव संखिज्जसमयाधिया ठिई। असंखेज्जसमयाहियाए ठिईए तप्पाउग्गुक्कोसियाए ठिईए सत्तावीसं भंगा भाणियव्वा।
[९ प्र.] इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से एक-एक नारकावास में एक समय अधिक जघन्य स्थिति में वर्तमान नारक क्या क्रोधपयुक्त होते हैं, मानोपयुक्त होते हैं, मायोपयुक्त होते हैं अथवा लोभोपयुक्त होते हैं ?
[९ उ.] गौतम! उनमें से कोई-कोई क्रोधोपयुक्त, कोई मानोपयुक्त, कोई मायोपयुक्त और कोई लोभोपयुक्त होता है। अथवा बहुत-से क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त, मायोपयुक्त और लोभोपयुक्त होते हैं। अथवा कोई-कोई क्रोधोपयुक्त और मानोपयुक्त होता है, या कोई-कोई क्रोधोपयुक्त और बहुत से मानोपयुक्त होते हैं। [अथवा बहुत से क्रोधोपयुक्त और एक मानोपयुक्त या बहुत से क्रोधोपयुक्त और बहुत से मानोपयुक्त होते हैं।] इत्यादि प्रकार से अस्सी भंग समझने चाहिए। इसी प्रकार यावत् दो समय अधिक जघन्य स्थिति से लेकर संख्येय समयाधिक जघन्य स्थिति वाले नैरयिकों के लिए समझना चाहिए।
आधिक स्थिति वालों में तथा उसके योग्य उत्कृष्ट स्थिति वाले नारकों में सत्ताईस भंग कहने चाहिए।
विवेचन-नारकों के क्रोधोपयुक्तादि निरूपणपूर्वक प्रथम स्थितिस्थानद्वार-प्रस्तुत तीन सूत्रों में संग्रहणी गाथा के अनुसार रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकावासों के निवासी नारकों के जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट स्थिति स्थानों की अपेक्षा से क्रोधोपयुक्तादि विविध विकल्प (भंग) प्रस्तुत किये गये
हैं।
जघन्यादि स्थिति-प्रत्येक नारकावास में रहने वाले नारकों की स्थिति के स्थान भिन्न-भिन्न होने के कारण हैं-किसी की जघन्य स्थिति है, किसी की मध्यम और किसी की उत्कृष्ट । इस प्रथम रत्नप्रभा पृथ्वी के प्रथम प्रतर में नारकों की आयु कम से कम (जघन्य) १० हजार वर्ष की और अधिक से अधिक (उत्कृष्ट) ९० हजार वर्ष की है। जघन्य और उत्कृष्ट के बीच की आयु को मध्यम आयु कहते हैं। मध्यम आयु जघन्य और उत्कृष्ट के समान एक प्रकार की नहीं है। जघन्य आयु से एक समय अधिक