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________________ ७६] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र संवरेइ? हंता,गोयमा! एत्थ वितं चेव भाणियव्वं, नवरं अणुदिण्णं उवसामेइ,सेसा पडिसेहेयव्वा तिण्णि। [११-१ प्र.] भगवन्! क्या वह अपने आप से ही (कांक्षामोहनीयकर्म का) उपशम करता है, अपने आप से ही गर्दा करता है और अपने आप से ही संवर करता है ? ___ [११-१ उ.] हाँ, गौतम! यहाँ भी उसी प्रकार 'पूर्ववत्' कहना चाहिए। विशेषता यह है कि अनुदीर्ण (उदय में नहीं आए हुए) का उपशम करता है, शेष तीनों विकल्पों का निषेध करना चाहिए। [२] जंतं भंते! अणुदिण्णं उवसामेइ तं किं उट्ठाणेणं जाव पुरिसक्कारपरक्कमेण वा। [११-२ प्र.] भगवन् ! जीव यदि अनुदीर्ण कर्म का उपशम करता है, तो क्या उत्थान से यावत् पुरुषकार-पराक्रम से करता है या अनुत्थान से यावत् अपुरुषकार-पराक्रम से करता है ? [११-२ उ.] गौतम! पूर्ववत् जानना-यावत् पुरुषकार-पराक्रम से उपशम करता है। १२. से नूर्ण भंते! अप्पणा चेव वेदेइ अप्पणा चेव गरहइ ? एत्थ वि सच्चेव परिवाडी। नवरं उदिण्णं वेएइ, नो अणुदिष्णं वेएइ।एवं पुरिसक्कारपरक्कमे इ वा। [१२-प्र.] भगवन्! क्या जीव अपने आप से ही वेदन करता है और गर्दा करता है ? [१२-उ.] गौतम! यहाँ भी पूर्वोक्त समस्त परिपाटी पूर्ववत् समझनी चाहिए। विशेषता यह है कि उदीर्ण को वेदता है, अनुदीर्ण को नहीं वेदता। इसी प्रकार यावत् पुरुषकार पराक्रम से वेदता है, अनुत्थानादि से नहीं वेदता है। १३. से नूणं भंते! अप्पणा चेव निज्जरेति अप्पणा चेव गरहइ ? एत्थविसच्चेवपरिवाडी।नवरं उदयाणंतरपच्छाकडं कम्मनिज्जरेइ, एदंजावपरक्कमेइ वा। __ [१३-प्र.] भगवन् ! क्या जीव अपने आप से ही निर्जरा करता है और गर्दा करता है ? [१३-उ.] गौतम! यहाँ भी समस्त परिपाटी 'पूर्ववत्' समझनी चाहिए, किन्तु इतनी विशेषता है कि उदयानन्तर पश्चात्कृत कर्म की निर्जरा करता है। इसी प्रकार यावत् पुरुषकार-पराक्रम से निर्जरा और गर्दा करता है। इसलिए उत्थान यावत् पुरुषकार-पराक्रम हैं। विवेचन-कांक्षामोहनीय कर्म की उदीरणा, गर्हा, संवर, उपशम, वेदन, निर्जरा आदि से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर-प्रस्तुत चार सूत्रों में कांक्षामोहनीय कर्म की उदीरणा आदि के सम्बन्ध में तीन मुख्य प्रश्नोत्तर हैं-(१) उदीरणादि अपने आप से करता है, (२) उदीर्ण, अनुदीर्ण, अनुदीर्णउदीरणाभविक और उदयानन्तर पश्चात्कृत कर्म में से अनुदीर्ण-उदीरणाभविक की अर्थात्-जो उदय में नहीं आया है किन्तु उदीरणा के योग्य है उसकी उदीरणा करता है, (३) उत्थानादि पाँचों से कर्मोदीरणा करता है, अनुत्थानादि से नहीं। इसी के सन्दर्भ में उपशम, संवर, वेदन, गर्दा एवं निर्जरा के विषय में पूर्ववत् तीन-तीन मुख्य प्रश्नोत्तर अंकित हैं।
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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