SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम शतक : उद्देशक-३] [७५ [१०-१ प्र.] भगवन्! क्या जीव अपने आप से ही उस (कांक्षामोहनीय कर्म) की उदीरणा करता है, अपने आप से ही उसकी गर्दा करता है और अपने आप से ही उसका संवर करता है ? [१०-१ उ.] हाँ, गौतम! जीव अपने आप से ही उसकी उदीरणा, गर्दा और संवर करता है। [२] जं तं भंते! अप्पणा चेव उदीरेइ अप्पणा चेव गरहेइ, अप्पणा चेव संवरेइ तं उदिण्णं उदीरेइ १ अणुदिण्णं उदीरेइ २ अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेइ ३ उदयाणंतरपच्छाकडं कम्मं उदीरेइ ४? गोयमा! नो उदिण्णं उदीरेइ १, नो अणुदिण्णं उदीरेइ २, अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेइ ३, णो उदयाणंतरपच्छाकडं कम्मं उदीरेइ ४। [१०-२ प्र.] भगवन्! वह जो अपने आप से ही उसकी उदीरणा करता है, गर्दा करता है और संवर करता है, तो क्या उदीर्ण (उदय में आए हुए) की उदीरणा करता?; अनुदीर्ण (उदय में नहीं आए हुए) की उदीरणा करता है ?; या अनुदीर्ण उदीरणाभ्रविक (उदय में नहीं आये हुए, किन्तु उदीरणा के योग्य) कर्म की उदीरणा करता है ? अथवा उदयानन्तर पश्चात्कृत कर्म की उदीरणा करता है ? [१०-२ उ.] गौतम! उदीर्ण की उदीरणा नहीं करता, अनुदीर्ण की भी उदीरणा नहीं करता तथा उदयानन्तर पश्चात्कृत कर्म की भी उदीरणा नहीं करता, किन्तु अनुदीर्ण-उदीरणा-भविक (योग्य) कर्म की उदीरणा करता है। [३]जंतं भंते! अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेइ तं किं उट्ठाणेणं कम्मेणं बलेणं वीरिएणं पुरिसक्कारपरक्कमेणं अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेइ ? उदाहुतं अणुट्ठाणेणं अकम्मेणं अबलेणं अवीरिएणं अपुरिसक्कारपरक्कमेणं अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्म उदीरेइ ? गोयमा! तं उठाणेण वि कम्मेण वि बलेण वि वीरिएण वि पुरिसक्कारपरक्कमेण वि अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेइ, णो तं अणुटाणेणं अकम्मेणं अबलेणं अवीरिएणं अपुरिसक्कारपरक्कमेणं अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेइ। एवं सति अस्थि उट्ठाणे इवा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कारपरक्कमे इ वा। [१०-३ प्र.] भगवन्! यदि जीव अनुदीर्ण-उदीरणाभविक की उदीरणा करता है, तो क्या उत्थान से, कर्म से, बल से, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम से उदीरणा करता है, अथवा अनुत्थान से, अकर्म से, और अबल से, अवीर्य और अपुरुषकार-पराक्रम से उदीरणा करता है ? [१०-३ उ.] गौतम! वह अनुदीर्ण-उदीरणाभविक कर्म की उदीरणा उत्थान से, कर्म से, बल से, वीर्य से और पुरुषकार-पराक्रम से करता है, (किन्तु) अनुत्थान से, अकर्म से, अबल से, अवीर्य से और अपुरुषकार-पराक्रम से उदीरणा नहीं करता। अतएव उत्थान है, कर्म है, बल है, वीर्य है और पुरुषकार पराक्रम है। ११. [१] से नूणं भंते! अप्पणा चेव उवसामेइ, अप्पणा चेव गरहइ, अप्पणा चेव
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy