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________________ ६६] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [३-२ प्र.] 'भगवन् ! क्या वह देश से देशकृत है?' इत्यादि पूर्वोक्त प्रश्न वैमानिक दण्डक तक करना चाहिए। [३-२ उ.] इस प्रकार 'कहते हैं यह आलापक भी यावत् वैमानिकपर्यन्त चौबीस ही दण्डकों में आलापक कहना चाहिए। [३] एवं करेंति। एत्थ वि दंडओ जाव' वेमाणियाणं। [३-३] इसी प्रकार 'करते हैं ' यह आलापक भी यावत् वैमानिकपर्यन्त चौबीस ही दण्डकों में कहना चाहिए। [४] एवं करेस्संति। एत्थ वि दंडओ जाव' वेमाणियाणं। [३-३] इसी प्रकार 'करेंगे' यह आलापक भी यावत् वैमानिकपर्यन्त चौबीस ही दण्डकों में कहना चाहिए। [५]एवं चिते-चिणिंसु, चिणंति,चिणिस्संति। उवचिते-उवचिणिंसु, उवचिणंति, उवचिणिस्संति।उदीरेंसु, उदीरेंति, उदीरिस्संति।वेदिंसु, वेदेति, वेदिस्संति।निज्जरेंसु, निज्जति, निजरिस्संति। गाहा कड चित, उवचित, उदीरिया, वेदिया य, निज्जिण्णा। अदितिए चउभेदा, तियभेदा पच्छिमा तिण्णि॥१॥ ... [३-५] इसी प्रकार (कृत के तीनों काल की तरह) चित किया, चय करते हैं, चय करेंगे; उपचित-उपचय किया, उपचय करते हैं, उपचय करेंगे; उदीरणा की, उदीरणा करते हैं, उदीरणा करेंगे; वेदन किया, वेदन करते हैं, वेदन करेंगे; निर्जीर्ण किया, निजीर्ण करते हैं, निर्जीर्ण करेंगे; इन सब पदों का चौबीस ही दण्डकों के सम्बन्ध में पूर्ववत् कथन करना (आलापक करना) चाहिए। गाथार्थ-कृत, चित्त, उपचित्त, उदीर्ण, वेदित और निर्जीर्ण; इतने अभिलाप यहाँ कहने हैं। इनमें से कृत, चित और उपचित में एक-एक के चार-चार भेद हैं; अर्थात्-सामान्य क्रिया, भूत-काल की क्रिया, वर्तमान काल की क्रिया और भविष्यकाल की क्रिया। पिछले तीन पदों में सिर्फ तीन काल की क्रिया कहनी है। कांक्षामोहनीय-वेदनकारण-विचार ४. जीवा णं भंते! कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेति ? हंता, वेदेति। [४. प्र.] भगवन् ! क्या जीव कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं? [४. उ.] हाँ गौतम! वेदन करते हैं। ५. कहं णं भंते! जीवा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेति ? गोयमा! तेहिं तेहिं कारणेहिं संकिया कंखिया वितिगिछिया भेदसमावन्ना, कलुससमावन्ना एवं खलु जीवा कंखामोहणिज्ज कम्मं वेदेति। 'जाव' शब्द से वैमानिकपर्यंत पूर्वोक्त चौबीस दण्डक समझना चाहिए।
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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