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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [३-२ प्र.] 'भगवन् ! क्या वह देश से देशकृत है?' इत्यादि पूर्वोक्त प्रश्न वैमानिक दण्डक तक करना चाहिए।
[३-२ उ.] इस प्रकार 'कहते हैं यह आलापक भी यावत् वैमानिकपर्यन्त चौबीस ही दण्डकों में आलापक कहना चाहिए।
[३] एवं करेंति। एत्थ वि दंडओ जाव' वेमाणियाणं।
[३-३] इसी प्रकार 'करते हैं ' यह आलापक भी यावत् वैमानिकपर्यन्त चौबीस ही दण्डकों में कहना चाहिए।
[४] एवं करेस्संति। एत्थ वि दंडओ जाव' वेमाणियाणं।
[३-३] इसी प्रकार 'करेंगे' यह आलापक भी यावत् वैमानिकपर्यन्त चौबीस ही दण्डकों में कहना चाहिए।
[५]एवं चिते-चिणिंसु, चिणंति,चिणिस्संति। उवचिते-उवचिणिंसु, उवचिणंति, उवचिणिस्संति।उदीरेंसु, उदीरेंति, उदीरिस्संति।वेदिंसु, वेदेति, वेदिस्संति।निज्जरेंसु, निज्जति, निजरिस्संति। गाहा
कड चित, उवचित, उदीरिया, वेदिया य, निज्जिण्णा।
अदितिए चउभेदा, तियभेदा पच्छिमा तिण्णि॥१॥ ... [३-५] इसी प्रकार (कृत के तीनों काल की तरह) चित किया, चय करते हैं, चय करेंगे; उपचित-उपचय किया, उपचय करते हैं, उपचय करेंगे; उदीरणा की, उदीरणा करते हैं, उदीरणा करेंगे; वेदन किया, वेदन करते हैं, वेदन करेंगे; निर्जीर्ण किया, निजीर्ण करते हैं, निर्जीर्ण करेंगे; इन सब पदों का चौबीस ही दण्डकों के सम्बन्ध में पूर्ववत् कथन करना (आलापक करना) चाहिए।
गाथार्थ-कृत, चित्त, उपचित्त, उदीर्ण, वेदित और निर्जीर्ण; इतने अभिलाप यहाँ कहने हैं। इनमें से कृत, चित और उपचित में एक-एक के चार-चार भेद हैं; अर्थात्-सामान्य क्रिया, भूत-काल की क्रिया, वर्तमान काल की क्रिया और भविष्यकाल की क्रिया। पिछले तीन पदों में सिर्फ तीन काल की क्रिया कहनी है। कांक्षामोहनीय-वेदनकारण-विचार
४. जीवा णं भंते! कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेति ? हंता, वेदेति। [४. प्र.] भगवन् ! क्या जीव कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं? [४. उ.] हाँ गौतम! वेदन करते हैं। ५. कहं णं भंते! जीवा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेति ?
गोयमा! तेहिं तेहिं कारणेहिं संकिया कंखिया वितिगिछिया भेदसमावन्ना, कलुससमावन्ना एवं खलु जीवा कंखामोहणिज्ज कम्मं वेदेति।
'जाव' शब्द से वैमानिकपर्यंत पूर्वोक्त चौबीस दण्डक समझना चाहिए।