SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६०] अन्तक्रिया सम्बन्धी - चर्चा [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र १८. जीवे णं भंते! अंतकिरियं करेज्जा ? गोयमा ! अत्थेगतिए करेज्जा, अत्थेगतिए नो करेज्जा । अंतकिरियापदं नेयव्वं । [१८ प्र.] हे भगवन्! क्या जीव अन्तक्रिया करता है ? [१८ उ.] गौतम ! कोई जीव अन्तक्रिया करता है, कोई जीव नहीं करता। इस सम्बन्ध प्रज्ञापनासूत्र का अन्तक्रियापद (२०वाँ पद) जान लेना चाहिए। विवेचन – अन्तक्रिया सम्बन्धी प्रश्नोत्तर - प्रस्तुत सूत्र में अन्तक्रिया के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर अंकित हैं । अन्तक्रिया - जिस क्रिया के पश्चात् फिर कभी दूसरी क्रिया न करनी पड़े, वह अथवा कर्मों का सर्वथा अन्त करने वाली क्रिया अन्तक्रिया है । आशय यह है कि समस्त कर्मों का क्षय करके मोक्षप्राप्ति की क्रिया ही अन्तक्रिया है । निष्कर्ष यह है कि भव्य जीव ही मनुष्यभव पाकर अन्तक्रिया करता है। असंयतभव्य द्रव्यदेव आदि सम्बन्धी विचार १९. अह भंते ! असंजयभवियदव्वदेवाणं १, अविराहियसंजमाणं २, विराहियसंजमाणं ३, अविराहियसंजमासंजमाणं ४, विराहियसंजमासंजमाणं ५, असण्णीणं ६, तावसाणं ७, कंदप्पियाणं ८, चरगपरिव्वायगाणं ९, किव्विसियाणं १०, तेरिच्छियाणं ११, आजीवियाणं १२, आभिओगियाणं १३, ,सलिंगीणं दंसणवावन्नगाणं १४, एएसि णं देवलोगेसु उववज्जमाणाणं कस्स कहि उववाए पण्णत्ते ? गोयमा! अस्संजतभवियदव्वदेवाणं जहन्नेणं भवणवासीसु, उक्कोसेणं उवरिमगेविज्जए १ । अविराहियसंजमाणं जहन्त्रेणं सोहम्मे कप्पे, उक्कोसेणं सव्वट्ठसिद्धे विमाणे २ । विराहियसंजमाणं जहन्नेणं भवणवासीसु, उक्कोसेणं सोधम्मे कप्पे ३ । अविराहियसंजमाऽसंजमाणं जहन्नेणं सोहम्मे कप्पे, उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे ४ । विराहियसंजमासंजमाणं जहन्नेणं भवणवासीसु, उक्कोसेणं जोतिसिएस ५ । असण्णीणं जहन्नेणं भवणवासीसु, उक्कोसेणं वाणमंतरेसु ६। अवसेसा सव्वे जहन्नेणं भवणवासीसु, उक्कोसंग वोच्छामि – तावसाणं जोतिसिएस ७ । कंदप्पियाणं सोहम्मे कप्पे ८ । चरगपरिव्वायगाणं बंभलोए कप्पे ९ । किव्विसियाणं लंतगे कप्पे १० । तेरिच्छियाणं सहस्सारे कप्पे ११ । आजीवियाणं अच्चुए कप्पे १२ । आभिओगियाणं अच्चुए कप्पे १३ । सलिंगीणं दंसणवावन्नगाणं उवरिमगेवेज्जएसु १४ । [१९. प्र.] भगवन्! (१) असंयत भव्यद्रव्यदेव, (२) अखण्डित संयम वाला, (३) खण्डित संयम वाला, (४) अखण्डित संयमासंयम (देशविरति) वाला, (५) खण्डित संयमासंयम वाला, (६) असंज्ञी, (७) तापस, (८) कान्दर्पिक, (९) चरकपरिव्राजक, (१०) किल्विषिक, (११) तिर्यञ्च (१२) आजीविक, (१३) आभियोगिक, (१४) दर्शन (श्रद्धा) भ्रष्ट वेषधारी, ये सब यदि देवलोक में
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy