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[144] The easternmost point of Mount Mandara is 78,000 yojanas away from the westernmost point of the Goṣṭūpa Āvāsa mountain. The southernmost point of Mount Mandara is 78,000 yojanas away from the northernmost point of the Dakbhaṣa Āvāsa mountain. Similarly, the westernmost point of Mount Mandara is 78,000 yojanas away from the easternmost point of the Śaṅkha Āvāsa mountain. And similarly, the northernmost point of Mount Mandara is 78,000 yojanas away from the southernmost point of the Dakṣīma Āvāsa mountain.
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________________ १४४] [समवायाङ्गसूत्र सप्ताशीतिस्थानक-समवाय ४०५-मंदरस्स णं पव्वयस्स पुरथिमिल्लाओ चरमंताओ गोथूभस्स आवासपव्वयस्स पच्चत्थिमिल्ले चरमंते एस णं सत्तासीइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। मंदरस्स णं पव्वयस्स दक्खिणिल्लाओ चरमंताओ दगभासस्स आवासपव्वयस्स उत्तरिल्ले चरमंते एस णं सत्तासीइं जोयण-सहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। एवं मंदरस्स पच्चथिमिल्लाओ चरमंताओ संखस्सावासपव्वयस्स पुरथिमिल्ले चरमंते।एवं चेव मंदरस्स उत्तरिल्लाओ चरमंताओ दगसीमस्स आवासपव्वयस्स दाहिणिल्ले चरमंते एस णं सत्तासीइं जोयणसहस्साहिं आबाहाए अंतरे पण्णत्ते। मन्दर पर्वत के पूर्वी चरमान्त भाग से गोस्तूप आवास पर्वत का पश्चिमी चरमान्त भाग सत्तासी हजार योजन के अन्तर वाला है। मन्दर पर्वत के दक्षिणी चरमान्त भाग से दकभास आवास पर्वत का उत्तरी चरमान्त सतासी हजार योजन के अन्तरवाला है। इसी प्रकार मन्दर पर्वत के पश्चिमी चरमान्त से शंख आवास पर्वत का दक्षिणी चरमान्त भाग सतासी हजार योजन के अन्तर वाला है। और इसी प्रकार मन्दर पर्वत के उत्तरी चरमान्त से दकसीम आवास पर्वत का दक्षिणी चरमान्त भाग सतासी हजार योजन के अन्तरवाला है। विवेचन–मन्दर पर्वत जम्बूद्वीप के ठीक मध्य भाग में अवस्थित है और वह भूमितल पर दश हजार योजन विस्तार वाला है। मेरु या मन्दर पर्वत के इस विस्तार को जम्बूद्वीप के एक लाख योजन में से घटा देने पर नब्बै हजार योजन शेष रहते हैं। उसके आधे पैंतालीस हजार योजन पर जम्बूद्वीप का पूर्वी भाग, दक्षिणी भाग, पश्चिमी भाग और उत्तरी भाग प्राप्त होता है। इससे आगे लवण समुद्र के भीतर बियालीस हजार योजन की दूरी पर वेलन्धर नागराज का पूर्व में गोस्तूप आवास पर्वत अवस्थित है। इसी प्रकार जम्बूद्वीप के दक्षिणी भाग से उतनी ही दूरी पर दकभास आवास पर्वत है, पश्चिमी भाग से उतनी ही दूरी पर शंख आवास पर्वत है और उत्तरी भाग से उतनी ही दूरी पर दकसीम नाम का आवास पर्वत अवस्थित है। अतः मन्दर पर्वत के पूर्वी, पश्चिमी, दक्षिणी और उत्तरी अन्तिम भाग से उपर्युक्त दोनों दूरियों को जोड़ने पर (४५+४२-८७) सतासी हजार योजन के सूत्रोक्त चारों अन्तर सिद्ध हो जाते हैं। ४०६-छण्हं कम्मपगडीणं आइम-उवरिल्लवन्जाणं सत्तासीई उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ। आद्य ज्ञानावरण और अन्तिम (अन्तराय) कर्म को छोड़ कर शेष छहों कर्म प्रकृतियों की उत्तर प्रकृतियाँ (९+२+२८+४+४२+२=८७) सतासी कही गई हैं। ४०७-महाहिमवंत कूडस्स णं उवरिमंताओ सोगंधिस्स कंडस्स हेट्ठिल्ले चरमंते एस णं सत्तासीइं जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। एवं रुप्पिकूडस्स वि। महाहिमवन्त कूट के उपरिम अन्त भाग से सौगन्धिक कांड का अधस्तन चरमान्त भाग सतासी सौ (८७००) योजन के अन्तरवाला है। इसी प्रकार रुक्मी कूट के ऊपरी भाग से सौगन्धिक कांड के अधोभाग का अन्तर भी सतासी सौ योजन है। विवेचन-पहले बताया जा चुका है कि रत्नप्रभा के समतल भाग से सौगन्धिक कांड आठ हजार योजन नीचे है। तथा रत्नप्रभा के समतल से दो सौ योजन ऊंचा महाहिमवन्त वर्षधर पर्वत है, उसके
SR No.003441
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages379
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_samvayang
File Size24 MB
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