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## Twenty-One Shabala (Defilements)
**[Ekavimsati Sthanaka - Samavaya]**
**[63]**
1. Shabala who consumes Rajapinda (food offered to a king).
2. Shabala who intentionally kills earth and other living beings.
3. Shabala who intentionally speaks untruth.
4. Shabala who intentionally takes something without being given.
5. Shabala who intentionally sits or lies down on the earth, knowing it is inhabited by living beings.
6. Shabala who intentionally sits or lies down on stone, wood, or other places inhabited by living beings.
7. Shabala who intentionally sits or lies down on places inhabited by living beings, such as those with plants, trees, insects, or water.
8. Shabala who intentionally consumes root, tuber, bark, seaweed, flower, fruit, or green vegetables.
9. Shabala who bathes in water ten times in a year.
10. Shabala who consumes Maya-Sthan (a place of illusion) ten times in a year.
11. Shabala who consumes food or drink with hands wet with cold water.
**These twenty-one Shabala are considered defilements that weaken one's character and lead to karmic bondage.**
**[145]**
**These twenty-one Shabala are further categorized into four types of karma:**
1. **Appa-chakkhana-ka-sae** (Karma that obscures the knowledge of the soul):
* **Krodha** (Anger)
* **Mana** (Pride)
* **Maya** (Illusion)
* **Lobha** (Greed)
2. **Paccha-kkhana-avaranaka-sae** (Karma that covers the soul and prevents it from seeing the truth):
* **Krodha** (Anger)
* **Mana** (Pride)
* **Maya** (Illusion)
* **Lobha** (Greed)
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एकविंशतिस्थानक - समवाय ]
[ ६३
रायपिंडं भुंजमाणे सबले ११, आउट्टिआए पाणाइवायं करेमाणे सबले १२, आउट्टिआए मुसावायं वदमाणे सबले १३, आउट्टियाए आदिण्णादाणं गिण्हमाणे सबले १४, आउट्टियाए अणंतरहिआए पुढवीए ठाणं वा निसीहियं वा चेतेमाणे सबले १५, एवं आउट्टिआ चित्तमंताए पुढवीए, एवं आउट्टि चित्तमंताए सिलाए कोलावासंसि वा दारुए अण्णयरे वा तहप्पगारे ठाणं वा सिज्जं वा निसीहियं वा चेतेमाणे सबले १६, जीवपइट्ठिए सपाणे सबीए सहरिए सउत्तिंगे पणग- दग-मट्टीमक्कडासंताणए तहप्पगारे ठाणं वा सिज्जं वा निसीहियं वा चेतेमाणे सबले १७, आउट्टिआए मूलभोयणं वा कंदभोयणं वा तयाभोयणं वा, पवालभोयणं वा पुप्फभोयणं वा फलभोयणं वा हरियभोयणं वा भुंजमाणे सबले १८, अंतो संवच्छरस्स दस दगलेवे करेमाणे सबले १९, अंतो संवच्छ रस्स दस माइठाणाई सेवमाणे सबले २०, अभिक्खणं अभिक्खणं सीतोदयवियडवग्घारियपाणिणा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहित्ता भुंजमाणे सबले २१ ।
इक्कीस शबल कहे गये हैं (जो दोषरुप क्रिया-विशेषों के द्वारा अपने चारित्र को शबल कर्बुरित, मलिन या धब्बों से दूषित करते हैं) जैसे- - १. हस्त मैथुन करने वाला शबल, २. स्त्री आदि के साथ मैथुन सेवन करने वाला शबल, ३. रात में भोजन करने वाला शबल, ४. आधा-कर्मिक भोजन को सेवन करने वाला शबल, ५. सागारिक ( शय्यातर स्थान - दाता) का भोजन-पिंड ग्रहण करने वाला शबल, ६. औद्देशिक, बाजार से क्रीत और अन्यत्र से लाकर दिये गये (अभ्याहत) भोजन को खाने वाला शबल, ७. बार-बार प्रत्याख्यान (त्याग) कर पुन: उसी वस्तु को सेवन करने वाला शबल, ८. छह मास के भीतर एक गण से दूसरे गण में जाने वाला शबल, ९. एक मास के भीतर तीन वार नाभि प्रमाण जल में अवगाहन या प्रवेश करने वाला शबल, १०. एक मास के भीतर तीन बार मायास्थान को सेवन करने वाला शबल, ११. राजपिण्ड खाने वाला शबल, १२. जान-बूझ कर पृथवी आदि जीवों का घात करने वाला शबल, १३. जान-बूझ कर असत्य वचन बोलने वाला शबल, १४. जान-बूझकर बिना दी ( हुई) वस्तु को ग्रहण करने वाला शबल, १५. जान-बूझकर अनन्तर्हित (सचित्त) पृथिवी पर स्थान, आसन, कायोत्सर्ग आदि करने वाला शबल, १६. इसी प्रकार जान-बूझ कर सचेतन पृथिवी पर, सचेतन शिला पर और कोलावास (घुन वाली) लकड़ी आदि पर स्थान, शयन आसन आदि करने वाला शबल, १७. जीव- प्रतिष्ठित, प्राण- युक्त, सबीज, हरित - सहित, कीड़े-मकोड़े वाले, पनक, उदक, मृत्तिका कीड़ीनगरा वाले एवं इसी प्रकार के अन्य स्थान पर अवस्थान, शयन, आसनादि करने वाला शबल, १८. जान-बूझ कर मूल- भोजन, कन्दभोजन, त्वक्- भोजन, प्रबाल- भोजन, पुष्प - भोजन, फल- भोजन और हरित - भोजन करने वाला शबल, १९. एक वर्ष के भीतर दश वार जलावगाहन या जल में प्रवेश करने वाला शबल, २०. एक वर्ष के भीतर दश वार मायास्थानों का सेवन करने वाला शबल और २१. वार-वार शीतल जल से व्याप्त हाथों से अशन, पान, खादिम और स्वादिम वस्तुओं को ग्रहण कर खाने वाला शबल ।
१४५ - णिअट्टिबादरस्स णं खवित्तसत्तयस्स मोहणिज्जस्स कम्मस्स एक्कवीसं कम्मंसा संतकम्मा पण्णत्ता, तं जहा - अप्पच्चक्खाणकसाए कोहे, अप्पच्चक्खाणकसाए माणे, अप्पच्चक्खाणकसाए माया, अप्पच्चक्खाणकसाए लोभे, पच्चक्खाणावरणकसाए कोहे, पच्चक्खाणावरणकसाए माणे पच्चक्खाणावरणकसाए माया पच्चक्खाणावरणकसाए लोहे,