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प्रथम स्थान
१७
सिद्ध-पद
२१४- एगा तित्थसिद्धाणं वग्गणा एवं जाव। २१५- [एगा अतित्थसिद्धाणं वग्गणा। २१६- एगा तित्थगरसिद्धाणं वग्गणा। २१७- एगा अतित्थगरसिद्धाणं वग्गणा। २१८- एगा सयंबुद्धसिद्धाणं वग्गणा। २१९- एगा पत्तेयबुद्धसिद्धाणं वग्गणा। २२०- एगा बुद्धबोहियसिद्धाणं वग्गणा। २२१- एगा इत्थीलिंगसिद्धाणं वग्गणा। २२२- एगा पुरिसलिंगसिद्धाणं वग्गणा। २२३एगा णपुंसकलिंगसिद्धाणं वग्गणा। २२४– एगा सलिंगसिद्धाणं वग्गणा। २२५– एगा अण्णलिंगसिद्धाणं वग्गणा। २२६ - एगा गिहिलिंगसिद्धाणं वग्गणा]। २२७- एगा एक्कसिद्धाणं वग्गणा। २२८- एगा अणिक्कसिद्धाणं वग्गणा। २२९- एगा अपढमसमयसिद्धाणं वग्गणा, एवं जाव अणंतसमयसिद्धाणं वग्गणा।
तीर्थसिद्धों की वर्गणा एक है (२१४)। अतीर्थसिद्धों की वर्गणा एक है (२१५)। तीर्थंकरसिद्धों की वर्गणा एक है (२१६)। अतीर्थकरसिद्धों की वर्गणा एक है (२१७)। स्वयंबुद्धसिद्धों की वर्गणा एक है (२१८)। प्रत्येकबुद्धसिद्धों की वर्गणा एक है (२१९)। बुद्धबोधितसिद्धों की वर्गणा एक है (२२०)। स्त्रीलिंगसिद्धों की वर्गणा एक है (२२१)। पुरुषलिंगसिद्धों की वर्गणा एक है (२२२)। नपुंसकलिंगसिद्धों की वर्गणा एक है (२२३)। स्वलिंगसिद्धों की वर्गणा एक है (२२४) । अन्यलिंगसिद्धों की वर्गणा एक है (२२५)। गृहिलिंगसिद्धों की वर्गणा एक है (२२६)। एक (एक) सिद्धों की वर्गणा एक है (२२७)। अनेकसिद्धों की वर्गणा एक है (२२८)। अप्रथमसमय सिद्धों की वर्गणा एक है। इसी प्रकार यावत् अनन्तसमयसिद्धों की वर्गणा एक है (२२९)।
विवेचन— इसी एक स्थानक के ५२वें सूत्र में स्वरूप की समानता की अपेक्षा 'सिद्ध एक है' ऐसा कहा गया है और उक्त सूत्रों में उनके पन्द्रह प्रकार कहे गये हैं, सो इसे परस्पर विरोधी कथन नहीं समझना चाहिए। क्योंकि यहाँ पर भूतपूर्वप्रज्ञापननय की अर्थात् सिद्ध होने के मनुष्यभव की अपेक्षा तीर्थसिद्ध आदि की वर्गणा का प्रतिपादन किया गया है। इनका स्वरूप इस प्रकार है
१. तीर्थसिद्ध– जो तीर्थ की स्थापना के पश्चात् तीर्थ में दीक्षित होकर सिद्ध होते हैं, जैसे ऋषभदेव के
गणधर ऋषभसेन आदि। २. अतीर्थसिद्ध- जो तीर्थ की स्थापना से पूर्व सिद्ध होते हैं, जैसे मरुदेवी माता। ३. तीर्थंकर सिद्ध- जो तीर्थंकर होकर के सिद्ध होते हैं, जैसे ऋषभ आदि। ४. अतीर्थंकर सिद्ध– जो सामान्यकेवली होकर सिद्ध होते हैं, जैसे- गौतम आदि। ५. स्वयंबुद्धसिद्ध– जो स्वयं बोधि प्राप्त कर सिद्ध होते हैं, जैसे— महावीर स्वामी। ६. प्रत्येकबुद्धसिद्ध– जो किसी बाह्य निमित्त से प्रबुद्ध होकर सिद्ध होते हैं, जैसे- नमिराज आदि। ७. बुद्धबोधितसिद्ध– जो आचार्य आदि के द्वारा बोधि प्राप्त कर सिद्ध होते हैं, जैसे— जम्बूस्वामी आदि। ८. स्त्रीलिंगसिद्ध- जो स्त्रीलिंग से सिद्ध होते हैं, जैसे— मरुदेवी आदि। ९. पुरुषलिंग सिद्ध– जो पुरुष लिंग से सिद्ध होते हैं, जैसे- महावीर। १०. नपुंसकलिंग सिद्ध– जो कृत्रिम नपुंसकलिंग से सिद्ध होते हैं, जैसे- गांगेय।