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________________ स्थानाङ्गसूत्रम् ११. स्वलिंगसिद्ध– जो निर्ग्रन्थ वेष से सिद्ध होते हैं, जैसे— सुधर्मा। १२. अन्यलिंगसिद्ध– जो निर्ग्रन्थ वेष के अतिरिक्त अन्य वेष से सिद्ध होते हैं, जैसे- वल्कलचीरी। १३. गृहिलिंगसिद्ध– जो गृहस्थ के वेष से सिद्ध होते हैं, जैसे— मरुदेवी। १४. एकसिद्ध– जो एक समय में एक ही सिद्ध होते हैं, जैसे— महावीर। १५. अनेकसिद्ध– जो एक समय में दो से लेकर उत्कृष्टतः एक सौ आठ तक एक साथ सिद्ध होते हैं। जैसे- ऋषभदेव। इस प्रकार पन्द्रह द्वारों से मनुष्य पर्याय की अपेक्षा सिद्धों की विभिन्न वर्गणाओं का वर्णन किया गया है। परमार्थदृष्टि से सिद्धलोक में विराजमान सब-सिद्ध समान रूप से अनन्त गुणों के धारक हैं, अतः उनकी एक ही वर्गणा है। पुद्गल-पद २३०- एगा परमाणुपोग्गलाणं वग्गणा, एवं जाव एगा अणंतपएसियाणं खंधाणं वग्गणा। २३१- एगा एगपएसोगाढाणं पोग्गलाणं वग्गणा जाव एगा असंखेजपएसोगाढाणं पोग्गलाणं वग्गणा। २३२- एगा एगसमयठितियाणं पोग्गलाणं वग्गणा जाव एगा असंखेजसमयठितियाणं पोग्गलाणं वग्गणा। २३३–एगा एगगुणकालगाणं पोग्गलाणं वग्गणा जाव एगा असंखेजगुणकालगाणं पोग्गलाणं वग्गणा, एगा अणंतगुणकालगाणं पोग्गलाणं वग्गणा। २३४- एवं वण्णा गंधा रसा फासा भाणियव्वा जाव एगा अणंतगुणलुक्खाणं पोग्गलाणं वग्गणा। (एक प्रदेशी) परमाणु पुद्गलों की वर्गणा एक है, इसी प्रकार द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्धों की वर्गणा एक-एक है (२३०)। एक प्रदेशावगाढ पुद्गलों की वर्गणा एक है, इसी प्रकार दो, तीन यावत् असंख्यप्रदेशावगाढ पुद्गलों की वर्गणा एक-एक है (२३१)। एक समय की स्थिति वाले पुद्गलों की वर्गणा एक है। इसी प्रकार दो, तीन यावत् असंख्य समय की स्थिति वाले पुद्गलों की वर्गणा एक है (२३२) । एक गुण काले पुद्गलों की वर्गणा एक है। इसी प्रकार तीन यावत् असंख्य गुण काले पुद्गलों की वर्गणा एक-एक है। अनन्त गुण काले पुद्गलों की वर्गणा एक है (२३३)। इसी प्रकार सभी वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्शों के एक गुणवाले यावत् अनन्त गुण रूक्ष स्पर्शवाले पुद्गलों की वर्गणा एक-एक है (२३४)। २३५- एगा जहण्णपएसियाणं खंधाणं वग्गणा। २३६– एगा उक्कस्सपएसियाणं खंधाणं वग्गणा। २३७– एगा अजहण्णुक्कस्सपएसियाणं खंधाणं वग्गणा। २३८— एवं एगा जहण्णोगाहणगाणं खंधाणं वग्गणा। २३९–एगा उक्कोसोगाहणगाणं खंधाणं वग्गणा। २४०- एगा अजहण्णुक्कोसोगाहणगाणं खंधाणं वग्गणा। २४१- एगा जहण्णठितियाणं खंधाणं वग्गणा। २४२- एगा उक्कस्सठितियाणं खंधाणं वग्गणा। २४३- एगा अजहण्णुक्कोसठितियाणं खंधाणं वग्गणा। २४४एगा जहण्णगुण-कालगाणं खंधाणं वग्गणा। २४५- एगा उक्कस्सगुणकालगाणं खंधाणं वग्गणा। २४६- एगा अजहण्णुक्कस्सगुणकालगाणं खंधाणं वग्गणा। २४७-एवं-वण्ण-गंध-रस-फासाणं वग्गणा भाणियव्वा जाव एगा अजहण्णुक्कस्सगुणलुक्खाणं पोग्गलाणं [खंधाणं] वग्गणा।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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