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________________ प्रथम स्थान ६०- एगे सुब्भिसद्दे। ६१– एगे दुब्भिसद्दे। ६२– एगे सुरूवे। ६३ - एगे दुरूवे। ६४- एगे दीहे। ६५- एगे हस्से। ६६– एगे वट्टे। ६७– एगे तंसे। ६८– एगे चउरंसे। ६९- एगे पिहुले। ७०- एगे परिमंडले। ७१– एगे किण्हे। ७२- एगे णीले। ७३– एगे लोहिए। ७४एगे हालिद्दे। ७५- एगे सुक्किल्ले। ७६- एगे सुब्भिगंधे। ७७- एगे दुब्भिगंधे। ७८- एगे तित्ते। ७९- एगे कडुए। ८०- एगे कसाए। ८१- एगे अंबिले। ८२- एगे महुरे। ८३– एगे कक्खडे जाव। ८४ - [एगे मउए। ८५– एगे गरुए। ८६- एगे लहुए। ८७- एगे सीते। ८८- एगे उसिणे। ८९- एगे णिद्धे। ९०- एगे] लुक्खे। शब्द एक है (५५)। रूप एक है (५६) । गन्ध एक है (५७)। रस एक है (५८)। स्पर्श एक है (५९)। शुभ शब्द एक है (६०)। अशुभ शब्द एक है (६१)। शुभ रूप एक है (६२)। अशुभ रूप एक है (६३)। दीर्घ संस्थान एक है (६४) । ह्रस्व संस्थान एक है (६५)। वृत्त (गोल) संस्थान एक है (६६)। त्रिकोण संस्थान एक है (६७)। चतुष्कोण संस्थान एक है (६८)। विस्तीर्ण संस्थान एक है (६९)। परिमण्डल संस्थान एक है (७०)। कृष्ण वर्ण एक है (७१)। नीलवर्ण एक है (७२)। लोहित (रक्त) वर्ण एक है (७३)। हारिद्रवर्ण एक है (७४)। शुक्लवर्ण एक है (७५)। शुभगन्ध एक है (७६) । अशुभगन्ध एक है (७७)। तिक्तरस एक है (७८)। कटुकरस एक है (७९)। कषायरस एक है (८०)। आम्लरस एक है (८१)। मधुररस एक है (८२)। कर्कशस्पर्श एक है (८३) । मृदुस्पर्श एक है (८४)। गुरुस्पर्श एक है (८५)। लघुस्पर्श एक है (८६) । शीतस्पर्श एक है (८७) । उष्णस्पर्श एक है (८८)। स्निग्धस्पर्श एक है (८९)। और रूक्षस्पर्श एक है (९०)। विवेचन— उक्त सूत्रों में पुद्गल के लक्षण, कार्य, संस्थान (आकार) और पर्यायों का निरूपण किया गया है। रूप, रस, गन्ध और स्पर्श ये पुद्गल के लक्षण हैं। शब्द पुद्गल का कार्य है। दीर्घ, ह्रस्व वृत्त आदि पुद्गल के संस्थान हैं। कृष्ण, नील आदि वर्ण के पांच भेद हैं। शुभ और अशुभ रूप से गन्ध में दो भेद होते हैं। तिक्त, कटुक आदि रस के पांच भेद हैं और कर्कश, मृदु आदि स्पर्श के आठ भेद हैं। उस प्रकार पुद्गल-पद में पुद्गल द्रव्य का वर्णन किया गया है। अष्टादश पाप-पद ९१- एगे पाणातिवाए जाव। ९२ - [एगे मुसावाए। ९३– एगे अदिण्णादाणे। ९४एगे मेहुणे]। ९५- एगे परिग्गहे। ९६- एगे कोहे। जाव ९७ - [एगे माणे। ९८- एगा माया। ९९- एगे] लोभे। १००- एगे पेजे। १०१- एगे दोसे। जाव १०२-[एगे कलहे। १०३एगे अब्भक्खाणे। १०४ – एगे पेसुण्णे।] १०५ – एगे परपरिवाए। १०६– एगा अरतिरती। १०७- एगे मायामोसे। १०८- एगे मिच्छादसणसल्ले।। प्राणातिपात (हिंसा) एक है (९१)। मृषावाद (असत्यभाषण) एक है (९२) । अदत्तादान (चोरी) एक है
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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