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दशम स्थान
विक्खंभेणं, उवरिं दसजोयणसयाइं विक्खंभेणं, दसदसाइं जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पण्णत्ते ।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत एक हजार योजन भूमि में गहरा है, भूमितल पर दश हजार योजन विस्तृत है, ऊपर पण्डकवन में एक हजार योजन विस्तृत और सर्व परिमाण से एक लाख योजन ऊंचा कहा गया है (२९) ।
दिशा - सूत्र
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३० जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स बहुमज्झदेसभागे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उवरिमहेट्ठिल्लेसु खुड्डगपतरेसु, एत्थ णं अट्ठपएसिए रुयगे पण्णत्ते, जओ णं इमाओ दस दिसाओ पवहंति, तं जहा पुरत्थिमा, पुरत्थिमदाहिणा, दाहिणा, दाहिणपच्चत्थिमा, पच्चत्थिमा, पच्चत्थिमुत्तरा, उत्तरा, उत्तरपुरत्थिमा, उड्डा, अहा
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के बहुमध्य देश भाग में इसी रत्नप्रभा पृथिवी के ऊपर क्षुल्लक प्रतर में गोस्तनाकार चार तथा उसके नीचे के क्षुल्लक प्रतर में गोस्तनाकार चार, इस प्रकार आठ प्रदेशवाला रुचक कहा गया है। इससे दशों दिशाओं का उद्गम होता है, जैसे—
१. पूर्व दिशा, २. पूर्व-दक्षिण — आग्नेय दिशा, ३. दक्षिण दिशा, ४. दक्षिण-पश्चिम — नैर्ऋत्य दिशा, ५. पश्चिम दिशा, ६. पश्चिम-उत्तर— वायव्य दिशा, ७. उत्तर दिशा, ८. उत्तर-पूर्व ईशान दिशा, ९. ऊर्ध्व दिशा, १०. अधोदिशा (३०)।
३१ –— एतासि णं दसण्हं दिसाणं दस णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा संग्रहणी गाथा
इंदा अग्गेइ जम्मा य, णेरती वारुणी य वायव्वा ।
सोमा ईसाणी य, विमला य तमा य बोद्धव्वा ॥ १ ॥
इन दश दिशाओं के दश नाम कहे गये हैं, जैसे
१. ऐन्द्री, २. आग्रेयी, ३. याम्या, ४. नैर्ऋती, ५. वारुणी, ६. वायव्या, ७. सोमा, ८. ईशानी, ९. विमला,
१०. तमा (३१) ।
लवणसमुद्र- सूत्र
३२ – लवणस्स णं समुद्दस्स दस जोयणसहस्साइं गोतित्थविरहिते खेत्ते पण्णत्ते । लवणसमुद्र का दश हजार योजन क्षेत्र गोतीर्थ-रहित (समतल ) कहा गया हैं (३२) । ३३- लवणस्स णं समुद्दस्स दस जोयणसहस्साइं उदगमाले पण्णत्ते । लवणसमुद्र की उदकमाला (वेला) दश हजार योजन चौड़ी कही गई है (३३) ।
विवेचन — जिस जलस्थान पर गाएं जल पीने को उतरती हैं, वह क्रम से ढलानवाला आगे-आगे अधिक नीचा होता है, उसे गोतीर्थ कहते हैं। लवणसमुद्र के दोनों पार्श्वों में ९५ - ९५ हजार योजन तक पानी गोतीर्थ के आकार