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स्थानाङ्गसूत्रम्
९. अनेक जीव शरीर के एक देश से भी स्पर्शों का वेदन करते हैं। १०. अनेक जीव शरीर के सर्व देश से भी स्पर्शों का वेदन करते हैं (४)।
- दस इंदियत्था अणागता पण्णत्ता, तं जहा—देसेणवि एगे सद्दाइं सुणिस्संति सव्वेणवि एगे सद्दाइं सुणिस्संति। (देसेणवि एगे रूवाइं पासिस्संति। सव्वेणवि एगे रूवाइं पासिस्संति। देसेणवि एगे गंधाइं जिंघिस्संति। सव्वेणवि एगे गंधाई जिंघिस्संति। देसेणवि एगे रसाइं आसादेस्संति। सव्वेणवि एगे रसाइं आसादेस्संति। देसेणवि एगे फासाइं पडिसंवेदेस्संति)। सव्वणेवि एगे फासाइं पडिसंवेदेस्संति।
इन्द्रियों के भविष्यकालीन विषय दश कहे गये हैं, जैसे१. अनेक जीव शरीर के एक देश से भी शब्द सुनेंगे। २. अनेक जीव शरीर के सर्वदेश से भी शब्द सुनेंगे। ३. अनेक जीव शरीर के एक देश से भी रूप देखेंगे। ४. अनेक जीव शरीर के सर्वदेश से भी रूप देखेंगे। ५. अनेक जीव शरीर के एक देश से भी गन्ध सूंधेगे। ६. अनेक जीव शरीर के सर्व देश से भी गन्ध सूबेंगे। ७. अनेक जीव शरीर के एक देश से भी रस चखेंगे। ८. अनेक जीव शरीर के सर्व देश से भी रस चखेंगे। ९. अनेक जीव शरीर के एक देश से भी स्पर्शों का वेदन करेंगे।
१०. अनेक जीव शरीर के सर्व देश से भी स्पर्शों का वेदन करेंगे (५)। अच्छिन्न-पुद्गल-चलन-सूत्र
६- दसहिं ठाणेहिं अच्छिण्णे पोग्गले चलेजा, तं जहा—आहारिजमाणे वा चलेजा। परिणामेजमाणे वा चलेजा। उस्ससिजमाणे वा चलेजा। णिस्ससिजमाणे वा चलेजा। वेदेजमाणे वा चलेजा। णिज्जरिजमाणे वा चलेजा। विउव्विजमाणे वा चलेजा। परियारिजमाणे वा चलेजा। जक्खाइटे वा चलेजा। वातपरिगए वा चलेजा।
दश स्थानों से अच्छिन्न (स्कन्ध ने संबद्ध) पुद्गल चलित होता है, जैसे१. आहार के रूप में ग्रहण किया जाता हुआ पुद्गल चलता है। २. आहार के रूप में परिणत किया जाता हुआ पुद्गल चलता है। ३. उच्छ्वास के रूप में ग्रहण किया जाता हुआ पुद्गल चलता है। ४. निःश्वास के रूप में परिणत किया जाता हुआ पुद्गल चलता है। ५. वेद्यमान पुद्गल चलता है। ६. निर्जीयमाण पुद्गल चलता है। ७. विक्रियमाण पुद्गल चलता है।