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दशम स्थान
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८. परिचारणा (मैथुन) के समय पुद्गल चलता है। ९. यक्षाविष्ट पुद्गल चलता है।
१०. वायु से प्रेरित होकर पुद्गल चलता है (६)। क्रोधोत्पत्ति-स्थान-सूत्र
७- दसहिं ठाणेहिं कोधुप्पत्ती सिया, तं जहा—मणुण्णाइं मे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाइंअवहरिसु। अमणुण्णाइं मे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाइं उवहरिसु। मणुण्णाइं मे सद्द-फरिस-रस-रूवगंधाइं अवहरइ। अमणुण्णाइं मे सद्द-फरिस-(रस-रूव)-गंधाइं उवहरति। मणुण्णाइं मे सद्द-(फरिसरस-रूव-गंधाई) अवहरिस्सति। अमणुण्णाइं मे सद्द-(फरिस-रस-रूव-गंधाइं) उवहरिस्सति। मणुण्णाई मे सद्द-(फरिस-रस-रूव)-गंधाइं अवहरिसु वा अवहरइ वा अवहरिस्सति वा। अमणुण्णाई मे सद्द(फरिस-रस-रूव-गंधाइं) उवहरिसु वा उवहरति वा. उवहरिस्सति वा। मणुण्णामणुण्णाइं मे सद्द(फरिस-रस-रूव-गंधाइं) अवहरिसु वा अवहरति वा अवहरिस्सति वा, उवहरिसु वा उवहरति वा उवहरिस्सति वा। अहं च णं आयरियं-उवज्झायाणं सम्मं वट्टामि, ममं च णं आयरिय-उवज्झाया मिच्छं विप्पडिवण्णा।
दश कारणों से क्रोध की उत्पत्ति होती है, जैसे१. उस-अमुक पुरुष ने मेरे मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध का अपहरण किया। २. उस पुरुष ने मुझे अमनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध प्राप्त कराए हैं। ३. वह पुरुष मेरे मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध का अपहरण करता है। ४. वह पुरुष मुझे अमनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध को प्राप्त कराता है। ५. वह पुरुष मेरे मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध का अपहरण करेगा। ६. वह पुरुष मुझे अमनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध प्राप्त कराएगा। ७. वह पुरुष मेरे मनोज्ञ शब्द, रस, रूप, और गन्ध का अपहरण करता था, अपहरण करता है और
अपहरण करेगा। ८. उस पुरुष ने मुझे अमनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध प्राप्त कराए हैं कराता है और कराएगा। ९. उस पुरुष ने मेरे मनोज्ञ तथा अमनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध का अपहरण किया है, करता है
और करेगा तथा प्राप्त कराए हैं, कराता है और कराएगा। १०. मैं आचार्य और उपाध्याय के प्रति सम्यक् व्यवहार करता हूं, परन्तु आचार्य और उपाध्याय मेरे
साथ प्रतिकूल व्यवहार करते हैं (७)। संयम-असंयम-सूत्र
- दसविधे संजमे पण्णत्ते, तं जहा–पुढविकाइयसंजमे, (आउकाइयसंजमे, तेउकाइयसंजमे, वाउकाइयसंजमे), वणस्सतिकाइयसंजमे, बेइंदियसंजमे, तेइंदियसंजमे, चउरिदियसंजमे, पंचिंदियसंजमे, अजीवकायसंजमे।