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________________ ६४० स्थानाङ्गसूत्रम् २. सुताणं धम्माणं ओगिण्हणयाए उवधारणयाए अब्भुटेतव्वं भवति। ३. णवाणं कम्माणं संजमेणमकरणताए अब्भुट्टेयव्वं भवति। ४. पोराणाणं कम्माणं तवसा विगिंचणताए विसोहणताए अब्भुटेतव्वं भवति। ५. असंगिहीतपरिजणस्स संगिण्हताए अब्भुटेयव्वं भवति। ६. सेहं आयारगोयरं गाहणताए अब्भद्रेयव्वं भवति। ७. गिलाणस्स अगिलाए वेयावच्चकरणताए अब्भुट्टेयव्वं भवति। ८. साहम्मियाणमधिकरणंसि उप्पण्णंसि तत्थ अणिस्सितोवस्सितो अपक्खग्गाही मज्झत्थ_ भावभूते कह णु साहम्मिया अप्पसद्दा अप्पझंझा अप्पतुमंतुमा ? उवसामणताए अब्भुढे यव्वं भवति। आठ वस्तुओं की प्राप्ति के लिए साधक सम्यक् चेष्टा करे, सम्यक् प्रयत्न करे, सम्यक् पराक्रम करे, इन आठों के विषय में कुछ भी प्रमाद नहीं करना चाहिए १. अश्रुत धर्मों को सम्यक् प्रकार से सुनने के लिए जागरूक रहे। २. सुने हुए धर्मों को मन से ग्रहण करे और उनकी स्थिति-स्मृति के लिए जागरूक रहे। ३. संयम के द्वारा नवीन कर्मों का निरोध करने के लिए जागरूक रहे। ४. तपश्चरण के द्वारा पुराने कर्मों को पृथक् करने और विशोधन करने के लिए जागरूक रहे। ५. असंगृहीत परिजनों (शिष्यों) का संग्रह करने के लिए जागरूक रहे। ६. शैक्ष (नवदीक्षित) मुनि को आचार-गोचर का सम्यक् बोध कराने के लिए जागरूक रहे। ७. ग्लान साधु की ग्लानि-भाव से रहित होकर वैयावृत्त्य करने के लिए जागरूक रहे। ८. साधर्मिकों में परस्पर कलह उत्पन्न होने पर—'ये मेरे साधर्मिक किस प्रकार अपशब्द, कलह और तू तू, मैं-मैं से मुक्त हों' ऐसा विचार करते हुए लिप्सा और अपेक्षा से रहित होकर किसी का पक्ष न लेकर मध्यस्थ भाव को स्वीकार कर उसे उपशान्त करने के लिए जागरूक रहे (१११)। विमान-सूत्र ११२- महासुक्क-सहस्सारेसु णं कप्पेसु विमाणा अट्ठ जोयणसताई उ8 उच्चत्तेणं पण्णत्ता। महाशुक्र और सहस्रार कल्पों में विमान आठ सौ योजन ऊंचे कहे गये हैं (११२) । वादि-सम्पदा-सूत्र ११३– अरहतो णं अरिट्ठणेमिस्स अट्ठसया वादीणं सदेवमणुयासुराए परिसाए वादे अपराजिताणं उक्कोसिया वादिसंपया हुत्था। अर्हत् अरिष्टनेमि के वादी मुनियों की उत्कृष्ट सम्पदा आठ सौ थी, जो देव, मनुष्य और असुरों की परिषद् में वाद-विवाद के समय किसी से भी पराजित नहीं होते थे (११३)।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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