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स्थानाङ्गसूत्रम्
पुरथिमा अब्भंतरा कण्हराई दाहिणं बाहिरं कण्हराइं पुट्ठा। दाहिणा अब्भंतरा कण्हराई पच्चत्थिमं बाहिरं कण्हराइं पुट्ठा। पच्चत्थिमा अब्भंतरा कण्हराई उत्तरं बाहिरं कण्हराइं पुट्ठा। उत्तरा अब्भंतरा कण्हराई पुरथिमं बाहिरं कण्हराई पुट्ठा। पुरथिमपच्चथिमिल्लाओ बाहिराओ। दो कण्हराईओ छलंसाओ। उत्तरदाहिणाओ बाहिराओ दो कण्हराईओ तंसाओ। सव्वाओ वि णं अब्भंतरकण्हराईओ चरंसाओ।
सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के ऊपर और ब्रह्मलोक कल्प के नीचे रिष्ट विमान का प्रस्तट है, वहाँ अखाड़े के समान समचतुरस्र (चतुष्कोण) संस्थान वाली आठ कृष्णराजियां (काले पुद्गलों की पंक्तियां) कही गई हैं, जैसे
१. पूर्व दिशा में दो कृष्णराजियां, २. दक्षिण दिशा में दो कृष्णराजियां, ३. पश्चिम दिशा में दो कृष्णराजियां, ४. उत्तर दिशा में दो कृष्णराजियां। पूर्व की आभ्यन्तर कृष्णराजि दक्षिण की बाह्य कृष्णराजि से स्पृष्ट है। दक्षिण की आभ्यन्तर कृष्णराजि पश्चिम की बाह्य कृष्णराजि से स्पृष्ट है। पश्चिम की आभ्यन्तर कृष्णराजि उत्तर की बाह्य कृष्णराजि से स्पृष्ट है। उत्तर की आभ्यन्तर कृष्णराजि पूर्व की बाह्य कृष्णराजि से स्पृष्ट है। पूर्व और पश्चिम की बाह्य दो कृष्णराजियां षट्कोण हैं। उत्तर और दक्षिण की बाह्य दो कृष्णराजियां त्रिकोण हैं। समस्त आभ्यन्तर कृष्णराजियाँ चतुष्कोण वाली हैं (४३)।
४४- एतासि णं अट्ठण्हं कण्हराईणं अट्ठ णामधेजा पण्णत्ता, तं जहा—कण्हराईति वा, मेहराईति वा, मघाति वा, माघवतीति वा, वातफलिहेति वा, वातपलिक्खोभेति वा, देवफलिहेति वा, देवपलिक्खोभेति वा।
इन आठ कृष्णराजियों के आठ नाम कहे गये हैं, जैसे१. कृष्णराजि, २. मेघराजि, ३. मघा, ४. माघवती, ५. वातपरिघ, ६. वातपरिक्षोभ, ७. देवपरिघ, ८. देवपरिक्षोभ (४४)। विवेचन- इन आठों कृष्णराजियों के चित्रों को अन्यत्र देखिये।
४५– एतासि णं अट्ठण्हं कण्हराईणं अट्ठसु ओवासंतरेसु अट्ठ लोगंतियविमाणा पण्णत्ता, तं जहा—अच्ची, अच्चीमाली, वइरोअणे, पभंकरे, चंदाभे, सूराभे, सुपइट्ठाभे, अग्गिच्चाभे।
इन आठों कृष्णराजियों के आठ अवकाशान्तरों में आठ लोकान्तिक देवों के विमान कहे गये हैं, जैसे१. अर्चि, २. अर्चिमाली, ३. वैरोचन, ४. प्रभंकर, ५. चन्द्राभ, ६. सूर्याभ, ७. सुप्रतिष्ठाभ, ८. अग्न्य र्चाभ (४५)। ४६- एतेसु णं अट्ठसु लोगंतियविमाणेसु अट्ठविधा लोगंतिया देवा पण्णत्ता, तं जहा