________________
अष्टम स्थान
६२५
औपमिक-काल-सूत्र
३९- अट्ठविधे अद्धोवमिए पण्णत्ते, तं जहा—पलिओवमे, सागरोवमे, ओसप्पिणी, उस्सप्पिणी, पोग्गलपरियट्टे, तीतद्धा, अणागतद्धा, सव्वद्धा।
औपमिक अद्धा (काल) आठ प्रकार का कहा गया है, जैसे१. पल्योपम, २. सागरोपम, ३. अवसर्पिणी, ४. उत्सर्पिणी, ५. पुद्गल परिवर्त, ६. अतीत-अद्धा,
७. अनागत-अद्धा, ८. सर्व-अद्धा (३९)। अरिष्टनेमि-सूत्र
४०- अरहतो णं अरिट्ठणेमिस्स जाव अट्ठमातो पुरिसजुगातो जुगंतकरभूमी। दुवासपरियाए अंतमकासी।
अर्हत् अरिष्टनेमि से आठवें पुरुषयुग तरु युगान्तकर भूमि रही मोक्ष जाने का क्रम चालू रहा, आगे नहीं।
अर्हत् अरिष्टनेमि के केवलज्ञान प्राप्त करने के दो वर्ष बाद ही उनके शिष्य मोक्ष जाने लगे थे (४०)। महावीर-सूत्र
४१- समणेणं भगवता महावीरेणं अट्ठ रायाणो मुंडे भवेत्ता अगाराओ अणगारितं पव्वाइया, तं जहासंग्रहणी-गाथा
वीरंगए वीरजसे, संजय एणिजए य रायरिसी ।
सेये सिवे उद्दायणे, तह संखे कासिवद्धणे ॥१॥ श्रमण भगवान् महावीर ने आठ राजाओं को मुण्डित कर अगार से अनगारिता में प्रव्रजित किया, जैसे--
१. वीराङ्गक, २. वीर्ययश, ३. संजय, ४. एणेयक, ५. सेय, ६. शिव, ७. उद्दायन, ८. शंखकाशीवर्धन (४१)। आहार-सूत्र
४२– अट्ठविहे आहारे पण्णत्ते, तं जहा—मणुण्णे असणे, पाणे, खाइमे, साइमे। अमणुण्णे (असणे, पाणे, खाइमे), साइमे।
आहार आठ प्रकार का कहा गया है, जैसे१:मनोज्ञ अशन, २. मनोज्ञ पान, ३. मनोज्ञ खाद्य, ४. मनोज्ञ स्वाद्य, ५. अमनोज्ञ अशन, ६. अमनोज्ञ पान,
७. अमनोज्ञ स्वाद्य, ८. अमनोज्ञ खाद्य (४२)। कृष्णराजि-सूत्र
४३- उप्पि सणंकुमार-माहिंदाणं कप्पाणं हेटुिं बंभलोगे कप्पे रिट्ठविमाणं-पत्थडे, एत्थ णं अक्खाडग-समचउरंस-संठाण-संठिताओ अट्ठ कण्हराईओ पण्णत्ताओ, तं जहा–पुरस्थिमे णं दो कण्हराईओ, दाहिणे णं दो कण्हराईओ, पच्चत्थिमे णं दो कण्हराईओ, उत्तरे णं दो कण्हराईओ।