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________________ ६०६ कूट - सूत्र १५० - जंबुद्दीवे दीवे सोमणसे वक्खारपव्वते सत्त कूडा पण्णत्ता, संग्रहणी - गाथा तं जहा सिद्धे सोमणसे या, बोद्धव्वे मंगलावतीकूडे । देवकुरु विमल कंचण, विसिट्ठकूडे य बोद्धव्वे ॥ १॥ म्बूद्वीप नामक द्वीप में सौमनस वक्षस्कारपर्वत पर सात कूट कहे गये हैं, जैसे— १. सिद्धकूट, २. सौमनसकूट, ३. मंगलावतीकूट, ४. देवकुरुकूट, ५. विमलकूट, ६. कांचनकूट, ७. विशिष्टकूट ( १५० ) । १५१ - जंबुद्दीवे दीवे गंधमायणे वक्खारपव्वते सत्त कूडा पण्णत्ता, तं जहा सिद्धे य गंधमायण, बोद्धव्वे गंधिलावतीकूडे । उत्तरकुरु फलिहे, लोहितक्खे आणंदणे चेव ॥ १ ॥ ४. मनुष्य निर्वर्तित पुद्गलों का, ५. मानुषी निर्वर्तित पुद्गलों का, ६. देव निर्वर्तित पुद्गलों का, स्थानाङ्गसूत्रम् बूद्वीप नामक द्वीप में गन्धमादन वक्षस्कारपर्वत पर सात कूट कहे गये हैं, जैसे १. सिद्धकूट, २. गन्धमादनकूट, ३. गन्धिलावतीकूट, ४. उत्तरकुरुकूट, ५. स्फटिककूट, ६. लोहिताक्षकूट, ७. आनन्दनकूट (१५१) । कुलकोटी सूत्र १५२– - बिइंदियाणं सत्त जाति-कुलकोडि - जोणीपमुह-सयसहस्सा पण्णत्ता । द्वीन्द्रिय जाति की सात लाख योनिप्रमुख कुलकोटि कही गई हैं (१५२) । पापकर्म - सूत्र १५३— जीवा णं सत्तट्ठाणणिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा—रइयनिव्वत्तिते, (तिरिक्खजोणियणिव्वत्तिते, तिरिक्खजोणिणीणिव्वत्तिते, मणुस्सणिव्वत्तिते, मणुस्सीणिव्वत्तिते), देवणिव्वत्तिते, देवीणिव्वत्तिते । एवं चिण - ( उवचिण-बंध - उदीर - वेद तह) णिज्जरा चेव । जीवों ने सात स्थानों से निर्वर्तित पुद्गलों का पापकर्मरूप से संचय किया है, करते हैं और करेंगे, जैसे— १. नैरयिक निर्वर्तित पुद्गलों का, २. तिर्यग्योनिक (तिर्यंच) निर्वर्तित पुद्गलों का, ३. तिर्यग्योनिकी (तिर्यंचनी) निर्वर्तित पुद्गलों का,
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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