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सप्तम स्थान
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७. देवी निर्वर्तित पुद्गलों का (१५३)।
इसी प्रकार जीवों ने सात स्थानों से निर्वर्तित पुद्गलों का पापकर्मरूप से उपचय, बन्ध, उदीरण, वेदन और निर्जरण किया है, करते हैं और करेंगे। पुद्गल-सूत्र
१५४– सत्तपएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता। सात प्रदेश वाले पुद्गलस्कन्ध अनन्त हैं (१५४)। १५५- सत्तपएसोगाढा पोग्गला जाव सत्तगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता।
सात प्रदेशावगाह वाले पुद्गलस्कन्ध अनन्त हैं । सात समय की स्थिति वाले पुद्गलस्कन्ध अनन्त हैं। सात गुणवाले पुद्गलस्कन्ध अनन्त हैं।
इसी प्रकार शेष वर्ण तथा गन्ध, रस और स्पर्शों के सात गुणवाले पुद्गलस्कन्ध अनन्त-अनन्त हैं (१५५)।
॥ सप्तम स्थान समाप्त ॥