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सप्तमस्थान
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मणुण्णा रूवा, (मणुण्णा गंधा, मणुण्णा रसा), मणुण्णा फासा, मणोसुहता, वइसुहता।
साता-वेदनीय कर्म का अनुभाव सात प्रकार का कहा गया है, जैसे१. मनोज्ञ शब्द, २. मनोज्ञ रूप, ३. मनोज्ञ गन्ध, ४. मनोज्ञ रस, ५. मनोज्ञ स्पर्श, ६. मनःसुख, ७. वचःसुख (१४३)।
१४४- असातावेयणिजस्स णं कम्मस्स सत्तविधे अणुभावे पण्णत्ते, तं जहा–अमणुण्णा सद्दा, (अमणुण्णा रूवा, अमणुण्णा गंधा, अमणुण्णा रसा, अमणुण्णा फासा, मणोदुहता), वइदुहता।
असातावेदनीय कर्म का अनुभाव सात प्रकार का कहा गया है, जैसे१. अमनोज्ञ शब्द, २. अमनोज्ञ रूप, ३. अमनोज्ञ गन्ध, ४. अमनोज्ञ रस, ५. अमनोज्ञ स्पर्श,
६. मनोदुःख, ७. वचोदुःख (१४४)। नक्षत्र-सूत्र
१४५ - महाणक्खत्ते सत्ततारे पण्णत्ते।
मघा नक्षत्र सात ताराओं वाला कहा गया है (१४५)। • १४६– अभिईयादिया णं सत्त णक्खत्ता पुव्वदारिया पण्णत्ता, तं जहा—अभिई, सवणो, धणिट्ठा, सतभिसया, पुव्वभद्दवया, उत्तरभद्दवया, रेवती।
अभिजित् आदि सात नक्षत्र पूर्वद्वार वाले कहे गये हैं, जैसे१. अभिजित्, २. श्रवण, ३. धनिष्ठा, ४. शतभिषक्, ५. पूर्वभाद्रपद, ६. उत्तरभाद्रपद, ७. रेवती (१४६)।
१४७ - अस्सिणियादिया णं सत्त णक्खत्ता दाहिणदारिया पण्णत्ता, तं जहा—अस्सिणी, भरणी, कित्तिया, रोहिणी, मिगसिरे, अद्दा, पुणव्वसू।
अश्विनी आदि सात नक्षत्र दक्षिणद्वार वाले कहे गये हैं, जैसे१. अश्विनी, २. भरणी, ३. कृत्तिका, ४. रोहिणी, ५. मृगशिर, ६. आर्द्रा, ७. पुनर्वसु (१४७)।
१४८- पुस्सादिया णं सत्त णक्खत्ता अवरदारिया पण्णत्ता, तं जहा—पुस्सो, असिलेसा, मघा, पुव्वाफग्गुणी, उत्तराफग्गुणी, हत्थो, चित्ता।
पुष्य आदि सात नक्षत्र पश्चिमद्वार वाले कहे गये हैं, जैसे१. पुष्य, २. अश्लेषा, ३. मघा, ४. पूर्वफाल्गुनी, ५. उत्तरफाल्गुनी, ६. हस्त, ७. चित्रा (१४८)।
१४९ - सातियाइया तं सत्त णक्खत्ता उत्तरदारिया पण्णत्ता, तं जहा-साती, विसाहा, अणुराहा, जेट्ठा, मूलो, पुव्वासाढा, उत्तरासाढा।
स्वाति आदि सात नक्षत्र उत्तरद्वार वाले कहे गये हैं, जैसे१. स्वाति, २. विशाखा, ३. अनुराधा, ४. ज्येष्ठा, ५. मूल, ६. पूर्वाषाढा, ७. उत्तराषाढा (१४९)।