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सप्तम स्थान
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बीयाणं- एतेसि णं धण्णाणं कोट्ठाउत्ताणं पल्लाउत्ताणं (मंचाउत्ताणं मासाउत्ताणं ओलित्ताणं लित्ताणं लंछियाणं मुहियाणं) पिहियाणं केवइयं कालं जोणी संचिट्ठित ?
गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्त संवच्छराइं । तेण परं जोणी पमिलायति (तेण परं जोणी पविद्धंसति, तेण परं जोणी विद्धंसति, तेण परं बीए अबीए भवति, तेण परं) जोणीवोच्छेदे पण्णत्ते।
प्रश्न- हे भगवन् ! अलसी, कुसुम्भ, कोद्रव, कंगु, राल, वरट (गोल चना), कोदूषक (कोद्रव-विशेष), सन, सरसों, मूलक बीज, ये धान्य जो कोष्ठागार-गुप्त, पल्यगुप्त, मंचगुप्त, मालागुप्त, अवलिप्त, लिप्त, लांछित, मुद्रित, पिहित हैं, उनकी योनि (उत्पादक शक्ति) कितने काल तक रहती है ? ।
उत्तर- हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सात वर्ष तक उनकी योनि रहती है। उसके पश्चात् योनि म्लान हो जाती है, प्रविध्वस्त हो जाती है, विध्वस्त हो जाती है, बीज अबीज हो जाता है और योनि का व्युच्छेद हो जाता है (९०)।
स्थिति-सूत्र
९१-- बायरआउकाइयाणं उक्कोसेणं सत्त वाससहस्साइं ठिती पण्णत्ता। बादर अप्कायिक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति सात हजार वर्ष की कही गई है (९१)। ९२- तच्चाए णं वालुयप्पभाए पुढवीए उक्कोसेणं णेरइयाणं सत्त सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता। तीसरी वालुकाप्रभा पृथ्वी के नारक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपम की कही गई है (९२)। ९३–चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए जहण्णेणं णेरइयाणं सत्त सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता।
चौथी पंकप्रभा पृथ्वी के नारक जीवों की जघन्य स्थिति सात सागरोपम कही गई है (९३)। अग्रमहिषी-सूत्र
९४– सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो वरुणस्स महारण्णो सत्त अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ। देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज वरुण की सात अग्रमहिषियां कही गई हैं (९४)। ९५- ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो सत्त अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ। देवेन्द्र देवराज ईशान के लोकपाल महाराज सोम की सात अग्रमहिषियां कही गई हैं (९५)। ९६- ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णो सत्त अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ।
देवेन्द्र देवराज ईशान के लोकपाल महाराज यम की सात अग्रमहिषियां कही गई हैं (९६)। देव-सूत्र
९७- ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अभितरपरिसाए देवाणं सत्त पलिओवमाइं ठिती
पण्णत्ता।