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सप्तम स्थान
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६. उवकरणातिसेसे। ७. भत्तपाणातिसेसे। आचार्य और उपाध्याय के गण में सात अतिशय कहे गये हैं, जैसे१. आचार्य और उपाध्याय उपाश्रय के भीतर दोनों पैरों की धूलि को झाड़ते हुए, प्रमार्जित करते हुए आज्ञा __का अतिक्रमण नहीं करते हैं। २. आचार्य और उपाध्याय उपाश्रय के भीतर उच्चार-प्रस्रवण का व्युत्सर्ग और विशोधन करते हुए आज्ञा का ___ अतिक्रमण नहीं करते हैं। . ३. आचार्य और उपाध्याय स्वतन्त्र हैं, यदि इच्छा हो तो दूसरे साधु की वैयावृत्त्य करें, यदि इच्छा न हो तो
न करें। ४. आचार्य और उपाध्याय उपाश्रय के भीतर एक रात या दो रात अकेले रहते हुए आज्ञा का अतिक्रमण नहीं
करते हैं। ५. आचार्य और उपाध्याय उपाश्रय के बाहर एक रात या दो रात अकेले रहते हुए आज्ञा का अतिक्रमण नहीं
करते हैं। ६. उपकरण की विशेषता- आचार्य और उपाध्याय अन्य साधुओं की अपेक्षा उज्ज्वल वस्त्रपात्रादि रख
सकते हैं। ७. भक्त-पान-विशेषता— स्वास्थ्य और संयम की रक्षा के अनुकूल आगमानुकूल विशिष्ट खान-पान कर
सकते हैं (८१)। संयम-असंयम-सूत्र
८२- सत्तविधे संजमे पण्णत्ते, तं जहा—पुढविकाइयसंजमे, (आउकाइयसंजमे, तेउकाइयसंजमे, वाउकाइयसंजमे, वणस्सइकाइयसंजमे), तसकाइयसंजमे, अजीवकाइयसंजमे।
संयम सात प्रकार का कहा गया है, जैसे१. पृथिवीकायिक-संयम, २. अप्कायिक-संयम, ३. तेजस्कायिक-संयम, ४. वायुकायिक-संयम, ५. वनस्पतिकायिक-संयम, ६. सकायिक-संयम, ७. अजीवकायिक-संयम- अजीव वस्तुओं के ग्रहण और परिभोग का त्यागना (८२)।
८३– सत्तविधे असंजमे पण्णत्ते, तं जहा—पुढविकाइयअसंजमे, (आउकाइयअसंजमे, तेउकाइयअसंजमे, वाउकाइयअसंजमे, वणस्सइकाइयअसंजमे), तसकाइयअसंजमे, अजीवकाइयअसंजमे।
असंयम सात प्रकार का कहा गया है, जैसे१. पृथिवीकायिक-असंयम, २. अप्कायिक-असंयम, ३. तेजस्कायिक-असंयम, ४. वायुकायिक-असंयम, ५. वनस्पतिकायिक-असंयम, ६. त्रसकायिक-असंयम, ७. अजीवकायिक-असंयम- अजीव वस्तुओं के ग्रहण और परिभोग का त्याग न करना (८३)।