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स्थानाङ्गसूत्रम्
जिनको केवलज्ञान-दर्शन उत्पन्न हुआ है वे अर्हन्, जिन, केवली इन पदार्थों को सम्पूर्ण रूप से जानते देखते हैं, जैसे
१. धर्मास्तिकाय, २. अधर्मास्तिकाय, ३. आकाशास्तिकाय, ४. शरीरमुक्त जीव,
५. परमाणु पुद्गल, ६. शब्द, ७. गन्ध (७८)। महावीर-सूत्र
७९- समणे भगवं महावीरे वइरोसभणारायसंघयणे समचउरंस-संठाण-संठिते सत्त रयणीओ उर्दू उच्चत्तेणं हुत्था।
वज्र-ऋषभ-नाराचसंहनन और समचतुरस्त्र-संस्थान से संस्थित श्रमण भगवान् महावीर के शरीर की ऊंचाई सात रनि-प्रमाण थी (७९)। विकथा-सूत्र
८०– सत्त विकहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा इथिकहा, भत्तकहा, देसकहा, रायकहा, मिउकालुणिया, दंसणभेयणी, चरित्तभेयणी।
विकथाएं सात कही गई हैं, जैसे१. स्त्रीकथा— विभिन्न देश की स्त्रियों की कथा-वार्तालाप। २. भक्तकथा— विभिन्न देशों के भोजन-पान संबंधी वार्तालाप। ३. देशकथा— विभिन्न देशों के रहन-सहन संबंधी वार्तालाप। ४. राज्यकथा— विभिन्न राज्यों के विधि-विधान आदि की कथा-वार्तालाप। ५. मृदु-कारुणिकी— इष्ट-वियोग-प्रदर्शक करुणरस-प्रधान कथा। ६. दर्शन-भेदिनी— सम्यग्दर्शन का विनाश करने वाली कथा-वार्तालाप।
७. चारित्र-भेदिनी- सम्यक्चारित्र का विनाश करने वाली बातें करना (८०)। आचार्य-उपाध्याय-अतिशेष-सूत्र
८१- आयरिय उवज्झायस्स णं गणंसि सत्त अइसेसा पण्णत्ता, तं जहा१. आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स पाय णिगिल्झिय-णिगिझिय पप्फोडेमाणे वा पमजमाणे
वा णातिक्कमति। २. (आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स उच्चारपासवणं विगिंचमाणे वा विसोधेमाणे वा
णातिक्कमति। ३. आयरिय-उवज्झाए पभू इच्छा वेयावडिय करेजा, इच्छा णो करेजा। ४. आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स एगरातं वा दुरातं वा एगगो वसमाणे णातिक्कमति। ५. आयरिय-उवज्झाए) बाहिं उवस्सयस्स एगरातं वा दुरातं वा [एगओ ?] वसमाणे
णातिक्कमति।