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________________ सप्तमस्थान ५८३ ४. कुणाल जनपद का राजा श्रावस्ती-निवासी रुक्मी। ५. काशी जनपद का राजा वाराणसी-निवासी शंख । ६. कुरु देश का राजा हस्तिनापुर-निवासी अदीनशत्रु । ७. पञ्चाल जनपद का राजा कम्पिल्लपुर-निवासी जितशत्रु (७५)। दर्शन-सूत्र ७६- सत्तविहे दंसणे पण्णत्ते, तं जहा सम्मइंसणे, मिच्छइंसणे, सम्मामिच्छदंसणे, चक्खुदंसणे, अचक्खुदंसणे, ओहिदंसणे, केवलदंसणे। दर्शन सात प्रकार का कहा गया है, जैसे१. सम्यग्दर्शन — वस्तु के स्वरूप का यथार्थ श्रद्धान। २. मिथ्यादर्शन- वस्तु के स्वरूप का अयथार्थ श्रद्धान। ३. सम्यग्मिथ्यादर्शन- यथार्थ और अयथार्थ रूप मिश्र श्रद्धान। ४. चक्षुदर्शन — आंख से सामान्य प्रतिभास रूप अवलोकन। ५. अचक्षुदर्शन — आंख के सिवाय शेष इन्द्रियों एवं मन से होने वाला सामान्य प्रतिभास रूप अवलोकन। ६. अवधिदर्शन– अवधिज्ञान होने के पूर्व अवधिज्ञान के विषयभूत पदार्थ का सामान्य प्रतिभासरूप अवलोकन। ७. केवलदर्शन– समस्त पदार्थों के सामान्य धर्मों का अवलोकन (७६)। छद्मस्थ-केवलि-सूत्र ७७- छउमत्थ-वीयरागे णं मोहणिजवज्जाओ सत्त कम्मपयडीओ वेदेति, तं जहाणाणावरणिजं, दसणावरणिजं, वेयणिजं, आउयं, णाम, गोतं, अंतराइयं। छद्मस्थ वीतरागी (ग्यारहवें और बारहवें गुणस्थानवर्ती) साधु मोहनीय कर्म को छोड़कर शेष सात कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है, जैसे १. ज्ञानावरणीय, २. दर्शनावरणीय, ३. वेदनीय, ४. आयुष्य, ५. नाम, ६. गोत्र, ७. अन्तराय (७७)। ७८- सत्त ठाणाई छउमत्थे सव्वभावेणं ण याणति ण पासति, तं जहा—धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जीवं असरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सई, गंधं। एयाणि चेव उप्पण्णणाण (दसणधरे अरहा जिणे केवली सव्वभावेणं) जाणति पासति, तं जहा—धम्मत्थिकायं, (अधम्मत्थिकायं, आगासस्थिकायं, जीवं असरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सई), गंध। छद्मस्थ जीव सात पदार्थों को सम्पूर्ण रूप से न जानता है और न देखता है, जैसे१. धर्मास्तिकाय, २. अधर्मास्तिकाय, ३. आकाशास्तिकाय, ४. शरीररहित जीव, ५. परमाणु पुद्गल, ६. शब्द,७. गन्ध ।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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