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स्थानाङ्गसूत्रम्
२४- एतासि णं सत्तण्डं पुढवीणं सत्त गोत्ता पण्णत्ता, तं जहा–रयणप्पभा, सक्करप्पभा, वालुअप्पभा, पंकप्पभा, धूमप्पभा, तमा, तमतमा।
इन सातों पृथिवियों के सात गोत्र (अर्थ के अनुकूल नाम) कहे गये हैं, जैसे१. रत्नप्रभा, २. शर्कराप्रभा, ३. वालुकाप्रभा, ४. पंकप्रभा, ५. धूमप्रभा,
६. तमःप्रभा, ७. तमस्तम:प्रभा (२४)। बादरवायुकायिक-सूत्र
२५– सत्तविहा बायरवाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा—पाईणवाते, पडीणवाते, दाहीणवाते, उदीणवाते, उड्डवाते, अहेवाते, विदिसिवाते।
बादर वायुकायिक जीव सात प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. पूर्व दिशा सम्बन्धी वायु, २. पश्चिम दिशा सम्बन्धी वायु, ३. दक्षिण दिक्षा सम्बन्धी वायु, ४. उत्तर दिशा सम्बन्धी वायु, ५. ऊर्ध्व दिशा सम्बन्धी वायु, ६. अधोदिशा सम्बन्धी वायु और ७. विदिशा सम्बन्धी वायु जीव (२५)। संस्थान-सूत्र
२६– सत्त संठाणा पण्णत्ता, तं जहा—दीहे, रहस्से, वट्टे, तंसे, चउरंसे, पिहुले, परिमंडले। संस्थान (आकार) सात प्रकार के कहे गये हैं, जैसे
१. दीर्घसंस्थान, २. ह्रस्वसंस्थान, ३. वृत्तसंस्थान (गोलाकार), ४. त्र्यस्त्र- (त्रिकोण-) संस्थान, ५. चतुरस्र(चौकोण-) संस्थान, ६. पृथुल-(स्थूल-) संस्थान, ७. परिमण्डल (अण्डे या नारंगी के समान) संस्थान (२६)।
विवेचन— कहीं कहीं वृत्त का अर्थ नारंगी के समान गोल और परिमण्डल का अर्थ वलय या चूड़ी के समान गोल आकार कहा गया है। भयस्थान-सूत्र
२७– सत्त भट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा इहलोगभए, परलोगभए, आदाणभए, अकम्हाभए, वेयणभए, मरणभए, असिलोगभए।
भय के स्थान सात कहे गये हैं, जैसे१. इहलोक-भय- इस लोक में मनुष्य, तिर्यंच आदि से होने वाला भय। २. परलोक-भय- परभव कैसा मिलेगा, इत्यादि परलोक सम्बन्धी भय। ३. आदान-भय- सम्पत्ति आदि के अपहरण का भय। ४. अकस्माद्-भय- अचानक या अकारण होने वाला भय। ५. वेदना-भय-रोग-पीड़ा आदि का भय। ६. मरण-भय- मरने का भय।