SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 625
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५५८ स्थानाङ्गसूत्रम् होने पर भी उसे पुद्गल-निर्मित नहीं मानने से है। छठे प्रकार में विभंगता जीव को रूपी ही मानने से है तथा सातवें प्रकार में विभंगता पृथिवी आदि चार निकायों के जीवों को नहीं मानने से बताई है। योनिसग्रंह-सूत्र ३– सत्तविधे जोणिसंगहे पण्णत्ते, तं जहा—अंडजा, पोतजा, जराउजा, रसजा, संसेयगा, संमुच्छिमा, उब्भिगा। योनि-संग्रह सात प्रकार का कहा गया है, जैसे१. अण्डज- अण्डों से उत्पन्न होने वाले पक्षी-सर्प आदि। २. पोतज- चर्म-आवरण बिना उत्पन्न होने वाले हाथी, शेर आदि। ३. जरायुज— चर्म-आवरण रूप जरायु (जेर) से उत्पन्न होने वाले मनुष्य, गाय आदि। ४. रसज— कालिक मर्यादा से अतिक्रांत दूध-दही, तेल आदि रसों में उत्पन्न होने वाले जीव। ५. संस्वेदज— संस्वेद (पसीना) से उत्पन्न होने वाले जूं, लीख आदि। ६. सम्मूछिम- तदनुकूल परमाणुओं के संयोग से उत्पन्न होने वाले लट आदि। ७. उद्भिज्ज— भूमि-भेद से उत्पन्न होने वाले खंजनक आदि जीव (३)। विवेचन— जीवों के उत्पन्न होने के स्थान-विशेषों को योनि कहते हैं। प्रस्तुत सूत्र में जिन सात प्रकार की योनियों का संग्रह किया है, उनमें से आदि की तीन योनियाँ गर्भ जन्म की आधार हैं। शेष रसज आदि चार योनियाँ सम्मूछिम जन्म की आधारभूत हैं। देव-नारकों के उपपात जन्म की आधारभूत योनियों का यहां संग्रह नहीं किया गया है। गति-आगति-सूत्र ४- अंडगा सत्तगतिया सत्तागतिया पण्णत्ता, तं जहा—अंडगे अंडगेसु उववजमाणे अंडगेहितो वा, पोतजेहिंतो वा, (जराउजेहिंतो वा, रसजेहिंतो वा, संसेयगेहिंतो वा, संमुच्छिमेहितो वा,) उब्भिगेहिंतो वा, उववजेजा। सच्चेव णं से अंडए अंडगत्तं विप्पजहमाणे अंडगत्ताए वा, पोतगत्ताए वा, (जराउजत्ताए वा, रसजत्ताए वा, संसेयगत्ताए वा, संमुच्छिमत्ताए वा), उब्भिगत्ताए वा गच्छेज्जा। अण्डज जीव सप्तगतिक और सप्त आगतिक कहे गये हैं, जैसे अण्डज जीव अण्डजों में उत्पन्न होता हुआ अण्डजों से या पोतजों से या जरायुजों से या रसजों से या संस्वेदजों से या सम्मूछिमों से या उद्भिज्जों से आकर उत्पन्न होता है। वही अण्डज जीव अण्डज योनि को छोड़ता हुआ अण्डज रूप से या पोतज रूप से या जरायुज रूप से या रसज रूप से या संस्वेदज रूप से या सम्मूछिम रूप से या उद्भिज्ज रूप से जाता है। अर्थात् सातों योनियों में उत्पन्न हो सकता है (४)। ५- पोतगा सत्तगतिया सत्तागतिया एवं चेव। सत्तण्हवि गतिरागती भाणियव्वा जाव
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy