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स्थानाङ्गसूत्रम्
क्षेत्र-पर्वत-सूत्र
८३- जंबुद्दीवे दीवे छ अकम्मभूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा–हेमवते, हेरण्णवते, हरिवासे, रम्मगवासे, देवकुरा, उत्तरकुरा।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में छह अकर्मभूमियां कही गई हैं, जैसे१. हैमवत, २. हैरण्यवत, ३. हरिवर्ष, ४. रम्यकवर्ष, ५. देवकुरु, ६. उत्तरकुरु (८३)।
८४- जंबुद्दीवे दीवे छव्वासा पण्णत्ता, तं जहा—भरहे, एरवते, हेमवते, हेरण्णवए, हरिवासे, रम्मगवासे।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में छह वर्ष (क्षेत्र) कहे गये हैं, जैसे१. भरत, २. ऐरवत, ३. हैमवत, ४. हैरण्यवत, ५. हरिवर्ष, ६. रम्यकवर्ष (८४)।
८५–जंबुद्दीवे दीवे छ वासाहरपव्वता पण्णत्ता, तं जहा—चुल्लहिमवंते, महाहिमवंते, णिसढे, णीलवंते, रुप्पी, सिहरी।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में छह वर्षधर पर्वत कहे गये हैं, जैसे१. क्षुद्रहिमवान्, २. महाहिमवान्, ३. निषध, ४. नीलवान्, ५. रुक्मी, ६. शिखरी (८५)।
८६- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं छ कूडा पण्णत्ता, तं जहा—चुल्लहिमवंतकूडे, वेसमणकूडे, महाहिमवंतकूडे, वेरुलियकूडे, णिसढकूडे, रुयगकूडे।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण भाग में छह कूट कहे गये हैं, जैसे१. क्षुद्रहिमवत्कूट, २. वैश्रमणकूट, ३. महाहिमवत्कूट, ४. वैडूर्यकूट, ५. निषधकूट, ६. रुचककूट (८६)।
८७- जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं छ कूडा पण्णत्ता, तं जहा—णीलवंतकूडे, उवदंसणकूडे, रुप्पिकूडे, मणिकंचणकूडे, सिहरिकूडे, तिगिंछिकूडे।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर भाग में छह कूट कहे गये हैं, जैसे
१. नीलवंतकूट, २. उपदर्शनकूट, ३. रुक्मिकूट ४. मणिकांचनकूट ५. शिखरीकूट, ६. तिगिछिकूट (८७)। महाद्रह-सूत्र
८८- जंबुद्दीवे दीवे छ महदहा पण्णत्ता, तं जहा—पउमद्दहे, महापउमद्दहे, तिगिंछिद्दहे, केसरिहहे, महापोंडरीयद्दहे, पुंडरीयद्दहे।
तत्थ णं छ देवयाओ महिड्ढियाओ जाव पलिओवमट्ठितियाओ परिवसंति, तं जहा—सिरी, हिरी, धिती, कित्ती, बुद्धी, लच्छी।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में छह महाद्रह कहे गये हैं, जैसे१. पद्मद्रह, २. महापद्मद्रह, ३. तिगिंञ्छिद्रह, ४. केशरीद्रह, ५. महापुण्डरीकद्रह, ६. पुण्डरीकद्रह (८८)। उनमें महर्धिक, महाद्युति, महाशक्ति, महायश, महाबल, महासुख वाली तथा पल्योपम की स्थिति वाली छह