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षष्ठ स्थान
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____पुरुषादानीय (पुरुषप्रिय) अर्हत् पार्श्व के देवों, मनुष्यों और असुरों की सभा में छह सौ अपराजित वादी मुनियों की सम्पदा थी (७८)।
७९- वासुपुजे णं अरहा छहिं पुरिससतेहिं सद्धिं मुंडे (भवित्ता अगाराओ अणगारियं) पव्वइए।
वासुपूज्य अर्हन् छह सौ पुरुषों के साथ मुण्डित होकर अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए थे (७९)। ८०-चंदप्पभे णं अरहा छउम्मासे छउमत्थे हुत्था।
चन्द्रप्रभ अर्हन् छह मास तक छद्मस्थ रहे (८०)। संयम-असंयम-सूत्र
८१– तेइंदिया णं जीवा असमारभमाणस्स छव्विहे संजमे कजति, तं जहा घाणामातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति। घाणामएणं दुक्खेणं असंजोएत्ता भवति। जिब्भामातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति, (जिब्भामएणं दुक्खेणं असंजोएत्ता भवति। फासामातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति। फासामएणं दुक्खेणं असंजोएत्ता भवति)। • त्रीन्द्रिय जीवों का घात न करने वाले पुरुष को छह प्रकार का संयम प्राप्त होता है, जैसे१. घ्राण-जनित सुख का वियोग नहीं करने से। २. घ्राण-जनित दुःख का संयोग नहीं करने से। ३. रस-जनित सुख का वियोग नहीं करने से। ४. रस-जनित दुःख का संयोग नहीं करने से। ५. स्पर्श-जनित सुख का वियोग नहीं करने से। ६. स्पर्श-जनित दुःख का संयोग नहीं करने से (८१)।
८२- तेइंदिया णं जीवा समारभमाणस्स छविहे असंजमे कज्जति, तं जहा घाणामातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति। घाणामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति। (जिब्भामातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति। जिब्भामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति। फासामातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति) फासामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवति।
त्रीन्द्रिय जीवों का घात करने वाले के छह प्रकार का असंयम होता है, जैसे१. घ्राण-जनित सुख का वियोग करने से। २. घ्राण-जनित दुःख का संयोग करने से। ३. रस-जनित सुख का वियोग करने से। ४. रस-जनित दुःख का संयोग करने से। ५. स्पर्श-जनित सुख का वियोग करने से। ६. स्पर्श-जनित दुःख का संयोग करने से (८२)।