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षष्ठ स्थान
२. गुरूजनों की वैयावृत्य करने के लिए ।
३. ईर्यासमिति का पालन करने के लिए।
४. संयम की रक्षा के लिए ।
५. प्राण - धारण करने के लिए।
६. धर्म का चिन्तन करने के लिए (४१) ।
४२—– छहिँ ठाणेहिं समणे णिग्गंथे आहारं वोच्छिदमाणे णातिक्कमति, तं जहा
संग्रहणी - गाथा
आतंके उवसग्गे, तितिक्खणे बंभचेरगुत्तीए । पाणिदया- तवहेडं,
सरीरवुच्छेयणट्टाए ॥ १॥
छहों कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ आहार का परित्याग करता हुआ भगवान् की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता
है, जैसे
१. आतंक
• ज्वर आदि आकस्मिक रोग हो जाने पर ।
२. उपसर्ग—— देव, मनुष्य, तिर्यंच कृत उपद्रव होने पर ।
३. तितिक्षण — ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिए।
४. प्राणियों की दया करने के लिए।
५. तप की वृद्धि के लिए ।
६. (विशिष्ट कारण उपस्थित होने पर) शरीर का व्युत्सर्ग करने के लिए (४२) ।
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उन्माद - सूत्र
४३– छहिं ठाणेहिं आया उम्मायं पाउणेज्जा, तं जहा— अरहंताणं अवण्णं वदमाणे, अरहंतपण्णत्तस्स धम्मस्स अवण्णं वदमाणे, आयरिय-उवज्झायाणं अवण्णं वदमाणे, चाउव्वण्णस्स संघस्स अवण्णं वदमाणे, जक्खावेसेण चेव, मोहणिज्जस्स चेव कम्मस्स उदएणं ।
छह कारणों से आत्मा उन्माद मिथ्यात्व को प्राप्त होता है, जैसे—
१. अर्हन्तों का अवर्णवाद करता हुआ ।
२. अर्हत्प्रज्ञप्त धर्म का अवर्णवाद करता हुआ ।
३. आचार्य और उपाध्याय का अवर्णवाद करता हुआ ।
४. चतुर्वर्ण (चतुर्विध) संघ का अवर्णवाद करता हुआ ।
५. यक्ष के शरीर में प्रवेश से ।
६. मोहनीय कर्म के उदय से (४३) ।
प्रमाद-सूत्र
४४– छव्विहे पमाए पण्णत्ते, तं जहा मज्जपमाए, णिद्दपमाए, विसयपमाए, कसायपमाए,