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________________ ५२८ स्थानाङ्गसूत्रम् जहा—पाईणाए, पडीणाए, दाहिणाए, उदीणाए, उड्डाए अधाए)। छहों दिशाओं में जीवों की आगति, अवक्रान्ति, आहार, वृद्धि, निवृद्धि, विकरण, गतिपर्याय समुद्घात, कालसंयोग, दर्शनाभिगम, ज्ञानाभिगम, जीवाभिगम और अजीवाभिगम कहा गया है, जैसे १. पूर्वदिशा में, २. पश्चिमदिशा में, ३. दक्षिणदिशा में, ४. उत्तरदिशा में, ५. ऊर्ध्वदिशा में और ६. अधोदिशा में (३९)। विवेचन-सूत्रोक्त पदों का विवरण इस प्रकार है१. आगति- पूर्वभव से मर कर वर्तमान भव में आना। २. अवक्रान्ति - उत्पत्तिस्थान में जाकर उत्पन्न होना। ३. आहार-प्रथम समय में शरीर के योग्य पुद्गलों का ग्रहण करना। ४. वृद्धि— उत्पत्ति के पश्चात् शरीर का बढना। ५. हानि- शरीर के पुद्गलों का ह्रास। ६. विक्रिया- शरीर के छोटे-बड़े आदि आकारों का निर्माण। ७. गति-पर्याय- गमन करना। ८. समुद्घात कुछ आत्म-प्रदेशों का शरीर से बाहर निकलना। ९. काल-संयोग- सूर्य परिभ्रमण-जनित काल-विभाग। १०. दर्शनाभिगम–अवधिदर्शन आदि के द्वारा वस्तु का अवलोकन। ११. ज्ञानाभिगम- अवधिज्ञान आदि के द्वारा वस्तु का परिज्ञान। १२. जीवाभिगम- अवधिज्ञान आदि के द्वारा जीवों का परिज्ञान। १३. अजीवाभिगम– अवधिज्ञान आदि के द्वारा पुद्गलों का परिज्ञान। उपर्युक्त गति-आगति आदि सभी कार्य छहों दिशाओं से सम्पन्न होते हैं। ४०- एवं पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणवि, मणुस्साणवि। इसी प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों की और मनुष्यों की गति-आगति आदि छहों दिशा में होती है (४०)। आहार-सूत्र ४१– छहिं ठाणेहिं समणे णिग्गंथे आहारमाहारेमाणे णातिक्कमति, तं जहासंग्रहणी-गाथा वेयण-वेयावच्चे, ईरियट्ठाए य संजमट्ठाए । तह पाणवत्तियाए, छटुं पुण धम्मचिंताए ॥१॥ छह कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ आहार को ग्रहण करता हुआ भगवान् की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है, जैसे १. वेदना— भूख की पीडा दूर करने के लिए।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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