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स्थानाङसूत्रम्
जूतपमाए, पडिलेहणापमाए।
प्रमाद (सत्-उपयोग का अभाव) छह प्रकार का कहा गया है, जैसे१. मद्य-प्रमाद, २. निद्रा-प्रमाद, ३. विषय-प्रमाद, ४. कषाय-प्रमाद,५. द्यूत-प्रमाद,
६.प्रतिलेखना-प्रमाद (४४)। प्रतिलेखना-सूत्र
४५- छव्विहा पमायपडिलेहणा पण्णत्ता, तं जहासंग्रहणी-गाथा
आरभडा संमद्धा, वजेयव्वा य मोसली ततिया ।
पप्फोडणा चउत्थी, विक्खित्ता वेइया छट्ठी' ॥ १॥ प्रमाद-पूर्वक की गई प्रतिलेखना छह प्रकार की कही गई है, जैसे१. आरभटा-उतावल से वस्त्रादि को सम्यक् प्रकार से देखे बिना प्रतिलेखना करना। २. समर्दा— मर्दन करके प्रतिलेखना करना। ३. मोसली- वस्त्र के ऊपरी, नीचले या तिरछे भाग का प्रतिलेखन करते हुए परस्पर घट्टन करना। ४. प्रस्फोटना- वस्त्र की धूलि को झटकारते हुए प्रतिलेखना करना। ५. विक्षिप्ता- प्रतिलेखित वस्त्रों को अप्रतिलेखित वस्त्रों के ऊपर रखना।। ६. वेदिका– प्रतिलेखना करते समय विधिवत् न बैठकर यद्वा-तद्वा बैठकर प्रतिलेखना करना (४५)।
४६- छव्विहा अप्पमायपडिलेहणा पण्णत्ता, तं जहासंग्रहणी-गाथा
अणच्चावितं अवलितं अणाणुबंधिं अमोसलिं चेव ।
छप्पुरिमा णव खोडा, पाणीपाणविसोहणी' ॥ १॥ प्रमाद-रहित प्रतिलेखना छह प्रकार की कही गई है, जैसे१. अनर्तिता-शरीर या वस्त्र को न नचाते हुए प्रतिलेखना करना। २. अवलिता- शरीर या वस्त्र को झुकाये बिना प्रतिलेखना करना। ३. अनानुबन्धी- उतावल रहित वस्त्र को झटकाये बिना प्रतिलेखना करना। ४. अमोसली- वस्त्र के ऊपरी, नीचले आदि भागों को मसले बिना प्रतिलेखना करना। ५. षट्पूर्वा-नवखोडा- प्रतिलेखन किये जाने वाले वस्त्र को पसारकर और आँखों से भली-भांति से देखकर उसके दोनों भागों को तीन-तीन बार पूंज कर तीन बार शोधना नवखोड है। ६. पाणिप्राण-विशोधिनी- हाथ के ऊपर वस्त्र-गत जीव को लेकर प्रासक स्थान पर प्रस्थापन करना (४६)।
उत्तराध्ययन सूत्र २६, पा. २६ उत्तराध्ययन सूत्र २६, पा. २५
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