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________________ ५३० स्थानाङसूत्रम् जूतपमाए, पडिलेहणापमाए। प्रमाद (सत्-उपयोग का अभाव) छह प्रकार का कहा गया है, जैसे१. मद्य-प्रमाद, २. निद्रा-प्रमाद, ३. विषय-प्रमाद, ४. कषाय-प्रमाद,५. द्यूत-प्रमाद, ६.प्रतिलेखना-प्रमाद (४४)। प्रतिलेखना-सूत्र ४५- छव्विहा पमायपडिलेहणा पण्णत्ता, तं जहासंग्रहणी-गाथा आरभडा संमद्धा, वजेयव्वा य मोसली ततिया । पप्फोडणा चउत्थी, विक्खित्ता वेइया छट्ठी' ॥ १॥ प्रमाद-पूर्वक की गई प्रतिलेखना छह प्रकार की कही गई है, जैसे१. आरभटा-उतावल से वस्त्रादि को सम्यक् प्रकार से देखे बिना प्रतिलेखना करना। २. समर्दा— मर्दन करके प्रतिलेखना करना। ३. मोसली- वस्त्र के ऊपरी, नीचले या तिरछे भाग का प्रतिलेखन करते हुए परस्पर घट्टन करना। ४. प्रस्फोटना- वस्त्र की धूलि को झटकारते हुए प्रतिलेखना करना। ५. विक्षिप्ता- प्रतिलेखित वस्त्रों को अप्रतिलेखित वस्त्रों के ऊपर रखना।। ६. वेदिका– प्रतिलेखना करते समय विधिवत् न बैठकर यद्वा-तद्वा बैठकर प्रतिलेखना करना (४५)। ४६- छव्विहा अप्पमायपडिलेहणा पण्णत्ता, तं जहासंग्रहणी-गाथा अणच्चावितं अवलितं अणाणुबंधिं अमोसलिं चेव । छप्पुरिमा णव खोडा, पाणीपाणविसोहणी' ॥ १॥ प्रमाद-रहित प्रतिलेखना छह प्रकार की कही गई है, जैसे१. अनर्तिता-शरीर या वस्त्र को न नचाते हुए प्रतिलेखना करना। २. अवलिता- शरीर या वस्त्र को झुकाये बिना प्रतिलेखना करना। ३. अनानुबन्धी- उतावल रहित वस्त्र को झटकाये बिना प्रतिलेखना करना। ४. अमोसली- वस्त्र के ऊपरी, नीचले आदि भागों को मसले बिना प्रतिलेखना करना। ५. षट्पूर्वा-नवखोडा- प्रतिलेखन किये जाने वाले वस्त्र को पसारकर और आँखों से भली-भांति से देखकर उसके दोनों भागों को तीन-तीन बार पूंज कर तीन बार शोधना नवखोड है। ६. पाणिप्राण-विशोधिनी- हाथ के ऊपर वस्त्र-गत जीव को लेकर प्रासक स्थान पर प्रस्थापन करना (४६)। उत्तराध्ययन सूत्र २६, पा. २६ उत्तराध्ययन सूत्र २६, पा. २५ २.
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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