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________________ ५०८ स्थानाङ्गसूत्रम् काल तक उत्पन्न होते रहेंगे? इसका उत्तर है कि नरक में लगातार जीव असंख्यात समय तक उत्पन्न होते रहेंगे। अतः नरक गति में उत्पाद का आनन्तर्य या अविरहकाल असंख्यात समय कहा जायेगा। इसी प्रकार व्यय-च्छेदन का अर्थ विनाश का अविरहकाल और व्यय-आनन्तर्य का अर्थ व्यय का विरहकाल लेना चाहिए। अर्थात् नरक से मर करके बाहर निकलने वाले जीवों का बिना व्यवच्छेद के लगातार निकलने का क्रम जितने समय तक जारी रहेगा वह व्यय का अविरहकाल कहलायेगा। तथा जितने समय तक नरकगति से एक भी जीव नहीं निकलेगा, वह नरक के व्यय का विरहकाल कहलायेगा। कर्म का बन्ध लगातार जितने समय तक होता रहेगा, वह बंध का अविरहकाल है और जितने काल के लिए कर्म का बन्ध नहीं होगा, वह बन्ध का विरहकाल है। जैसे अभव्य के लगातार कर्मबन्ध होता ही रहेगा, कभी विरह नहीं होगा, अतः अभव्य के कर्मबन्ध का अविरहकाल अनन्त समय है। भव्यजीव उपशम श्रेणी पर चढ़कर ग्यारहवें गुणस्थान में पहुंचता है, वहाँ पर एकमात्र सातावेदनीय कर्म का बन्ध होता है, शेष सात कर्मों का बन्ध नहीं होता। यतः ग्यारहवें गुणस्थान का जघन्य काल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तमुहूर्त है, अतः उस जीव के सात कर्मों में बन्ध का विरहकाल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त है। इसी प्रकार अन्य जीवों के विषय में जानना चाहिए। कर्म-प्रदेशों के छेदन या विरह को प्रदेश-छेदन कहते हैं। जैसे कोई सम्यक्त्वी जीव अनन्तानुबन्धी कषायों का विसंयोजन अर्थात् अप्रत्याख्यानादिरूप में परिवर्तन कर देता है, जितने समय तक यह विसंयोजना रहेगी उतने समय तक अनन्तानुबन्धी कषाय के प्रदेशों का विरह कहलायेगा और उस जीव के सम्यक्त्व से च्युत होते ही पुनः अनन्तानुबन्धी कषाय का बन्ध प्रारम्भ होते ही संयोजन होने लगेगा, उतना मध्यवर्तीकाल अनन्तानुबन्धी का विरहकाल कहलायेगा। इसी प्रकार द्विधा-छेदन का अर्थ मोहकर्म को प्राप्त कर्मप्रदेशों का दर्शनमोह और चारित्रमोह में विभाजित होना आदि लेना चाहिए। काल के निरन्तर चलने वाले प्रवाह को समय-आनन्तर्य कहते हैं। सामान्य रूप से निरन्तर चलने वाले संसार-प्रवाह को सामान्य आनन्तर्य जानना चाहिए। अनन्त-सूत्र २१७ – पंचविधे अणंतए पण्णत्ते, तं जहा—णामाणंतए, ठवणाणंतए, दव्वाणंतए, गणणाणंतए, पदेसाणंतए। अहवा-पंचविहे अणंतए पण्णत्ते, तं जहा—एगंतोऽणंतए, दुहओणंतए, देसवित्थाराणंतए, सव्ववित्थाराणंतए, सासयाणंतए। अनन्तक पांच प्रकार का कहा गया है, जैसे १. नाम-अनन्तक- किसी व्यक्ति का 'अनन्त' यह नाम रख देना। जैसे आगमभाषा में वस्त्र का नाम अनन्तक है। २. स्थापना-अनन्तक- स्थापना निक्षेप के द्वारा किसी वस्तु में अनन्त की स्थापना कर देना स्थापना
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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