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पंचम स्थान -तृतीय उद्देश
२. उरू (जंघा) से निर्याण करने वाला जीव तिर्यंचगामी होता है। ३. हृदय से निर्याण करने वाला जीव मनुष्यगामी होता है। ४. शिर से निर्याण करने वाला जीव देवगामी होता है।
५. सर्वाङ्ग में निर्याण करने वाला जीव सिद्धगति-पर्यवसानवाला कहा गया है अर्थात् मुक्ति प्राप्त करता है (२१४)। छेदन-सूत्र
२१५ – पंचविहे छेयणे पण्णत्ते, तं जहा—उप्पाछेयणे, वियच्छेयणे, बंधच्छेयणे, पएसच्छेयणे, दोधारच्छेयणे।
छेदन (विभाग) पांच प्रकार का कहा गया है, जैसे१. उत्पाद-छेदन- उत्पाद पर्याय के आधार पर विभाग करना। २. व्यय-छेदन— विनाश पर्याय के आधार पर विभाग करना। ३. बन्ध-छेदन— कर्म-बन्ध का छेदन, या पुद्गलस्कन्ध का विभाजन। ४. प्रदेश-छेदन — निर्विभागी वस्तु के प्रदेश का बुद्धि से विभाजन। . ५. द्विधा-छेदन- किसी वस्तु के दो विभाग करना (२१५)। आनन्तर्य-सूत्र
२१६- पंचविहे आणंतरिए पण्णत्ते, तं जहा—उप्पायाणंतरिए, वियाणंतरिए, पएसाणंतरिए, समयाणंतरिए, सामण्णाणंतरिए।
आनन्तर्य (विरह का अभाव) पांच प्रकार का कहा गया है, जैसे१. उत्पाद-आनन्तर्य- लगातार उत्पत्ति। २. व्यय-आनन्तर्य- लगातार विनाश। ३. प्रदेश-आनन्तर्य— लगातार प्रदेशों की संलग्नता। ४. समय-आनन्तर्य- समय की निरन्तरता। ५. सामान्य-आनन्तर्य—किसी पर्याय विशेष की विवक्षा न करके सामान्य निरन्तरता (२१६)।
विवेचन– उपर्युक्त दोनों सूत्रों का उक्त सामान्य शब्दार्थ लिखकर संस्कृत टीकाकार ने एक दूसरा भी अर्थ किया है जो एक विशेष अर्थ का बोधक है। उसके अनुसार छेदन का अर्थ 'विरहकाल' और आनन्तर्य का अर्थ 'अविरहकाल' है। कोई जीव किसी विवक्षित पर्याय का त्याग कर अन्य पर्याय में कुछ काल तक रह कर पुनः उसी पूर्व पर्याय को जितने समय के पश्चात् प्राप्त करता है, उतने मध्यवर्ती काल का नाम विरहकाल है। यह एक जीव की अपेक्षा विरहकाल का कथन है । नाना जीवों की अपेक्षा—यदि नरक में लगातार कोई भी जीव उत्पन्न न हो, तो बारह मुहूर्त तक एक भी जीव वहाँ उत्पन्न नहीं होगा। अतः नरक में उत्पाद का छेदन अर्थात् विरहकाल बारह मुहूर्त का कहा जायेगा। इसी प्रकार उत्पादन का आनन्तर्य अर्थात् लगातार उत्पत्ति को उत्पाद-आनन्तर्य या उत्पाद का अवरिह-काल समझना चाहिए। जैसे—यदि नरकगति में लगातार नारकी जीव उत्पन्न होते रहें तो कितने