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________________ स्थानाङ्गसूत्रम् इसी प्रकार द्वीन्द्रिय जीव भी पांच गतिक और पांच आगतिक जानना चाहिए। यावत् पंचेन्द्रिय तक के सभी जीव पांच गतिक और पांच आगतिक कहे गये हैं । अर्थात् सभी त्रस जीव मर कर पांचों ही प्रकार के जीवों में उत्पन्न हो सकते हैं (२०६-२०७)। ५०४ जीव- सूत्र २०८ - पंचविधा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा —— कोहकसाई, ( माणकसाई, मायाकसाई), लोभकसाई, अकसाई । अहवा—पंचविधा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा——णेरड्या, (तिरिक्खजोणिया, मणुस्सा), देवा, सिद्धा । सर्व जीव पांच प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. नारक, २. तिर्यंच, ३. मनुष्य, ४. देव, ५. सिद्ध (२०८ ) । योनिस्थिति-सूत्र २०९ – अह भंते ! कल - मसूर - तिल - मुग्ग-मास - णिप्फाव - कुलत्थ-आलिसंदग-सतीण-पलिमंथगाणं एतेसि णं धण्णाणं कुट्ठाउत्ताणं (पल्लाउत्ताणं मंचाउत्ताणं मालाउत्ताणं ओलित्ताणं लित्ताणं छियाणं मुद्दियाणं पिहिताणं) केवइयं कालं जोणी संचिट्ठति ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पंच संवच्छराई । तेणं परं जोणी पमिलायति, तेण परं जोणी पविद्धंसति, तेणं परं जोणी विद्धंसति, तेणं परं बीए अबीए भवति); तेण परं जोणीवोच्छेदे पण्णत्ते । हे भगवन् ! मटर, मसूर, तिल, मूंग, उड़द, निष्पाव (सेम), कुलथी, चवला, तूवर और काला चना—इन धान्यों को कोठे में गुप्त (बन्द), पल्य में गुप्त, मचान में गुप्त और माल्य में गुप्त करके उनके द्वारों को ढंक देने पर, गोबर से लीप देने पर, चारों ओर से लीप देने पर, रेखाओं से लांछित कर देने पर मिट्टी से मुद्रित कर देने पर और भलीभाँति से सुरक्षित रखने पर उनकी योनि ( उत्पादक - शक्ति) कितने काल तक बनी रहती है ? हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त काल तक और उत्कृष्ट पांच वर्ष तक उनकी उत्पादक शक्ति बनी रहती है। उसके पश्चात् उसकी योनि म्लान हो जाती है, उसके पश्चात् उसकी योनि विध्वस्त हो जाती है, उसके पश्चात् योनि क्षीण हो जाती है, उसके पश्चात् बीज अबीज हो जाता है, उसके पश्चात् योनि का विच्छेद हो जाता है (२०९)। संवत्सर-सूत्र २१०—– पंच संवच्छरा पण्णत्ता, तं जहा—णक्खत्तसंवच्छरे, जुगसंवच्छरे, पमाणसंवच्छरे, लक्खणसंवच्छरे, सणिंचरसंवच्छरे । संवत्सर (वर्ष) पांच प्रकार के कहे गये हैं, जैसे— १. नक्षत्र - संवत्सर, २. युग-संवत्सर, ३. प्रमाण-संवत्सर, ४. लक्षण-संवत्सर, ५. शनिश्चर - संवत्सर (२१० ) ।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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