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________________ पंचम स्थान तृतीय उद्देश ५०३ ५. सर्वोत्कल- उक्त सभी प्रकार की प्रबल शक्तिवाला पुरुष (२०२)। समिति-सूत्र २०३- पंच समितीओ पण्णत्ताओ, तं जहा—इरियासमिती, भासासमिती, एसणासमिती, आयाणभंड-मत्त-णिक्खेवणासमिती, उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल-पारिठावणियसमिती।. समितियाँ पांच प्रकार की कही गई हैं, जैसे१. ईर्यासमिति गमन में सावधानी युग-प्रमाण भूमि को शोधते हुए गमन करना। २. भाषासमिति— बोलने में सावधानी हित, मित, प्रिय वचन बोलना। ३. एषणासमिति- गोचरी में सावधानी निर्दोष भिक्षा लेना। ४. आदान-भाण्ड-अमत्र-निक्षेपणासमिति— भोजनादि के भाण्ड-पात्र आदि को सावधानीपूर्वक देखशोधकर लेना और रखना। ५. उच्चार (मल) प्रस्रवण- (मूत्र) श्लेष्म (कफ) जल्ल (शरीर का मैल) सिंघाड़ (नासिका का मल), इनका निर्जन्तु स्थान में विमोचन करना (२०३)। जीव-सूत्र २०४– पंचविधा संसारसमावण्णगा जीवा पण्णत्ता, तं जहा—एगिंदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिंदिया। संसार-समापन्नक (संसारी) जीव पांच प्रकार के कहे गये हैं, जैसे १. एकेन्द्रिय, २. द्वीन्द्रिय, ३. त्रीन्द्रिय, ४. चतुरिन्द्रिय और ५. पंचेन्द्रियजीव (२०४)। गति-आगति-सूत्र २०५ -- एगिदिया पंचगतिया पंचागतिया पण्णत्ता, तं जहा—एगिदिए एगिदिएसु उववजमाणे एगिदिएहितो वा, (बेइंदिएहितो वा, तेइंदिएहितो वा, चउरिदिएहितो वा,) पंचिंदिएहितो वा उववजेजा। से चेव णं से एगिदिए एगिंदियत्तं विप्पजहमाणे एगिंदियत्ताए वा, (बेइंदियत्ताए वा, तेइंदियत्ताए वा, चउरिदियत्ताए वा), पंचिंदियत्ताए वा गच्छेज्जा। एकेन्द्रिय जीव पांच गतिक और पांच आगतिक कहे गये हैं, जैसे १. एकेन्द्रिय जीव एकेन्द्रियों में उत्पन्न होता हुआ एकेन्द्रियों से, या द्वीन्द्रियों से, या त्रीन्द्रियों से, या चतुरिन्द्रियों से, या पंचेन्द्रियों से आकर उत्पन्न होता है। २. वही एकेन्द्रियजीव एकेन्द्रियपर्याय को छोड़ता हुआ एकेन्द्रियों में, या द्वीन्द्रियों में, या त्रीन्द्रियों में, या चतुरिन्द्रियों में, या पंचेन्द्रियों में उत्पन्न होता है (२०५)। २०६– बेंदिया पंचगतिया पंचागतिया एवं चेव। २०७ – एवं जाव पंचिंदिया पंचगतिया पंचागतिया पण्णत्ता, तं जहा—पंचिंदिए जाव गच्छेज्जा।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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