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________________ ५०२ स्थानाङ्गसूत्रम् ३. अन्तचारी-ग्राम के अन्तिम भाग में स्थित गृहों से गोचरी लेने वाला या उपाश्रय के पार्श्ववर्ती गृहों से गोचरी लेने वाला। ४. मध्यचारी-ग्राम के मध्य भाग से गोचरी लेने वाला। ५. सर्वचारी-ग्राम के सभी भागों से गोचरी लेने वाला (१९९)। वनीपक-सूत्र २००- पंच वणीमगा पण्णत्ता, तं जहा—अतिहिवणीमगे, किवणवणीमगे, माहणवणीमगे, साणवणीमगे, समणवणीमगे। वनीपक (याचक) पांच प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. अतिथि-वनीपक- अतिथिदान की प्रशंसा कर भोजन माँगने वाला। २. कृपण-वनीपक– कृपणदान की प्रशंसा करके भोजन माँगने वाला। ३. माहन-वनीपक– ब्राह्मण-दान की प्रशंसा करके भोजन माँगने वाला। ४. श्व-वनीपक– कुत्ते के दान की प्रशंसा करके भोजन माँगने वाला। ५. श्रमण-वनीपक- श्रमणदान की प्रशंसा करके भोजन माँगने वाला (२००)। अचेल-सूत्र २०१– पंचहिं ठाणेहिं अचेलए पसत्थे भवति, तं जहा—अप्पापडिलेहा, लाघविए पसत्थे, रूवे वेसासिए, तवे अणुण्णाते, विउले इंदियणिग्गहे। पांच कारणों से अचेलक प्रशस्त (प्रशंसा को प्राप्त) होता है, जैसे१. अचेलक की प्रतिलेखना अल्प होती है। २. अचेलक का लाघव प्रशस्त होता है। ३. अचेलक का रूप विश्वास के योग्य होता है। ४. अचेलक का तप अनुज्ञात (जिन-अनुमत) होता है। ५. अचेलक का इन्द्रिय-निग्रह महान् होता है (२०१)। उत्कल-सूत्र २०२– पंच उक्कला पण्णत्ता, तं जहा—दंडुक्कले, रज्जुक्कले, तेणुक्कले, देसुक्कले, सबुक्कले। पांच उत्कल (उत्कट शक्ति-सम्पन्न) पुरुष कहे गये हैं, जैसे१. दण्डोत्कल— प्रबल दण्ड (आज्ञा या सैन्यशक्ति) वाला पुरुष । २. राज्योत्कल- प्रबल राज्यशक्ति वाला पुरुष। ३. स्तेनोत्कल— प्रबल चोरों की शक्तिवाला पुरुष। ४. देशोत्कल— प्रबल जनपद की शक्तिवाला पुरुष।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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