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________________ ५०१ पंचम स्थान तृतीय उद्देश ये पांचों महानरक सातवीं नरकभूमि में हैं (१९६)। महाविमान-सूत्र १९७- उड्ढलोगे णं पंच अणुत्तरा महतिमहालया महाविमाणा पण्णत्ता, तं जहा—विजये, वेजयंते, जयंते, अपराजिते, सव्वट्ठसिद्धे। ऊर्ध्वलोक में पांच अनुत्तर महातिमहान् महाविमान कहे गये हैं, जैसे१. विजय, २. वैजयन्त, ३. जयन्त, ४. अपराजित और ५. सर्वार्थसिद्धि। ये पांचों महाविमान वैमानिक लोक के सर्व-उपरिम भाग में हैं (१९७)। सत्त्व-सूत्र १९८– पंच पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–हिरिसत्ते, हिरिमणसत्ते, चलसत्ते, थिरसत्ते, उदयणसत्ते। पुरुष पांच प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. हीसत्त्व- लज्जावश हिम्मत रखने वाला। २.. ह्रीमनःसत्त्व- लज्जावश भी मन में ही हिम्मत लाने वाला, (देह में नहीं)। ३. चलसत्त्व— हिम्मत हारने वाला।। ४. स्थिरसत्त्व— विकट परिस्थिति में भी हिम्मत को स्थिर रखने वाला। ५. उदयनसत्त्व- उत्तरोत्तर प्रवर्धमान सत्त्व या पराक्रम वाला (१९८)। भिक्षाक-सूत्र १९९- पंच मच्छा पण्णत्ता, तं जहा—अणुसोतचारी, पडिसोतचारी, अंतचारी, मज्झचारी, सव्वचारी। . एवामेव पंच भिक्खागा पण्णत्ता, तं जहा—अणुसोतचारी, (पडिसोतचारी, अंतचारी, मझचारी), सव्वचारी। मत्स्य (मच्छ) पांच प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. अनुस्रोतचारी- जल-प्रवाह के अनुकूल चलने वाला। २. प्रतिस्रोतचारी- जल-प्रवाह के प्रतिकूल चलने वाला। ३. अन्तचारी— जल-प्रवाह के किनारे-किनारे चलने वाला। ४. मध्यचारी— जल-प्रवाह के मध्य में चलने वाला। ५. सर्वचारी- जल में सर्वत्र विचरण करने वाला। इसी प्रकार भिक्षुक भी पांच प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. अनुस्रोतचारी— उपाश्रय से लेकर सीधी गृहपंक्ति से गोचरी लेने वाला। २. प्रतिस्रोतचारी- गली के अन्तिम गृह से उपाश्रय तक घरों से गोचरी लेने वाला।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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