SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 559
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४९२ स्थानाङ्गसूत्रम् । द्रव्य है। वह संक्षेप में पांच प्रकार का कहा गया है, जैसे१. द्रव्य की अपेक्षा, २. क्षेत्र की अपेक्षा, ३. काल की अपेक्षा, ४. भाव की अपेक्षा, ५. गुण की अपेक्षा। १. द्रव्य की अपेक्षा- आकाशास्तिकाय एक द्रव्य है। २. क्षेत्र की अपेक्षा- आकाशास्तिकाय लोक-अलोक प्रमाण सर्वव्यापक है। ३. काल की अपेक्षा— आकाशास्तिकाय कभी नहीं था, ऐसा नहीं है; कभी नहीं है, ऐसा नहीं है; कभी नहीं होगा, ऐसा नहीं है। वह भूतकाल में था, वर्तमान में है और भविष्य में रहेगा। अत: वह ध्रुव, निचित, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्य है। ४. भाव की अपेक्षा- आकाशास्तिकाय अवर्ण, अगन्ध, अरस और अस्पर्श है। ५. गुण की अपेक्षा- आकाशास्तिकाय अवगाहन गुणवाला है (१७२)। १७३– जीवत्थिकाए णं अवण्णे अगंधे अरसे अफासे अरूवी जीवे सासए अवट्ठिए लोगदव्वे। से समासओ पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा—दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ। दव्वओ णं जीवत्थिकाए अणंताई दव्वाई। खेत्तओ लोगपमाणमेत्ते। कालओ ण कयाइ णासी, ण कयाइ ण भवति, ण कयाइ ण भविस्सइत्ति—भुविं च भवति य भविस्सति य, धुवे णिइए सासते अक्खए अव्वए अवट्टिते णिच्चे। भावओ अवण्णे अगंधे अरसे अफासे। गुणओ उवओगगुणे। जीवास्तिकाय अवर्ण अगन्ध, अरस, अस्पर्श, जीव, शाश्वत, अवस्थित और लोक का एक अंशभूत द्रव्य है। वह संक्षेप से पांच प्रकार का कहा गया है, जैसे१. द्रव्य की अपेक्षा, २. क्षेत्र की अपेक्षा, ३. काल की अपेक्षा, ४. भाव की अपेक्षा, ५. गुण की अपेक्षा। १. द्रव्य की अपेक्षा- जीवास्तिकाय अनन्त द्रव्य हैं। २. क्षेत्र की अपेक्षा— जीवास्तिकाय लोकप्रमाण है, अर्थात् लोकाकाश के असंख्यात प्रदेशों के बराबर प्रदेशों वाला है। ३. काल की अपेक्षा— जीवास्तिकाय कभी नहीं था, ऐसा नहीं है; कभी नहीं है, ऐसा नहीं है; कभी नहीं होगा, ऐसा नहीं है। वह भूतकाल में था, वर्तमानकाल में है और भविष्यकाल में रहेगा। अतः वह ध्रुव, निचित, शाश्वत, अक्षत, अव्यय, अवस्थित और नित्य है। ४. भाव की अपेक्षा— जीवास्तिकाय अवर्ण, अगन्ध, अरस और अस्पर्श है। ५. गुण की अपेक्षा— जीवास्तिकाय उपयोग गुणवाला है (१७३)। १७४- पोग्गलत्थिकाए पंचवण्णे पंचरसे दुगंधे अट्ठफासे रूवी अजीवे सासते अवट्ठिते लोगदव्वे।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy