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पंचम स्थान तृतीय उद्देश
४९१ १७१– अधम्मत्थिकाए अवण्णे अगंधे अरसे अफासे अरूवी अजीवे सासए अवट्ठिए लोगदव्वे।
से समासओ पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा—दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ। दव्वओ णं अधम्मत्थिकाए एगं दव्वं।
खेत्तओ लोगपमाणमेत्ते।
कालओ ण कयाइ णासी, ण कयाइ ण भवति, ण कयाइ ण भविस्सइत्ति भुविं च भवति य भविस्सति य, ध्रुवे णिइए सासते अक्खए अव्वा! अवट्टिते णिच्चे।
भावओ अवण्णे अगंधे अरसे अफासे। गुणओ ठाणगुणे।
अधर्मास्तिकाय अवर्ण, अगन्ध, अरस, अस्पर्श, अरूपी, अजीव, शाश्वत, अवस्थित और लोक का अंशभूत द्रव्य है।
वह संक्षेप में पांच प्रकार का कहा गया है, जैसे१. द्रव्य की अपेक्षा, २. क्षेत्र की अपेक्षा, ३. काल की अपेक्षा, ४. भाव की अपेक्षा, ५. गुण की अपेक्षा। १. द्रव्य की अपेक्षा– अधर्मास्तिकाय एक द्रव्य है। २. क्षेत्र की अपेक्षा– अधर्मास्तिकाय लोकप्रमाण है।
३. काल की अपेक्षा– अधर्मास्तिकाय कभी नहीं था, ऐसा नहीं है; कभी नहीं है, ऐसा नहीं है; कभी नहीं होगा, ऐसा नहीं है। वह भूतकाल में था, वर्तमान में है और भविष्य में रहेगा। अतः वह ध्रुव, निचित, शाश्वत, अव्यय, अवस्थित और नित्य है।
४. भाव की अपेक्षा– अधर्मास्तिकाय अवर्ण, अगन्ध, अरस और अस्पर्श है।
५. गुण की अपेक्षा– अधर्मास्तिकाय अवस्थान गुणवाला है। अर्थात् स्वयं ठहरने वाले जीव और पुद्गलों के ठहरने में सहायक है (१७१)।
१७२– आगासत्थिकाए अवण्णे अगंधे अरसे अफासे अरूवी अजीवे सासए अवट्ठिए लोगालोगदव्वे।
से समासओ पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा–दाओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ। दव्वओ णं आगासत्थिकाए एगं दव्वं।
खेत्तओ लोगालोगपमाणमेत्ते।
कालओ ण कयाइ णासी, ण कयाइ ण भवति, ण कयाइ ण भविस्सइत्ति—भुविं च भवति य भविस्सति य, धुवे णिइए सासते अक्खए अव्वए अवद्विते णिच्चे।
भावओ अवण्णे अगंधे अरसे अफासे। गुणओ अवगाहणागुणे। आकाशास्तिकाय अवर्ण, अगन्ध, अरस, अस्पर्श, अरूपी, अजीव, शाश्वत, अवस्थित और लोकालोक रूप