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________________ पंचम स्थान द्वितीय उद्देश ४६९ ५. कोई साधु बाहर पुष्पोद्यान या वृक्षोद्यान में ठहरा हो और वहां (क्रीडा करने के लिए राजा का अन्तःपुर आ जावे), राजपुरुष उस स्थान को सर्व ओर से घेर लें और निकलने के द्वार बन्द कर दें, तब वह वहां रह सकता ___इन पांच कारणों से श्रमण-निर्ग्रन्थ राजा के अन्तःपुर में प्रवेश करता हुआ तीर्थंकरों की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है (१०२)। गर्भ-धारण-सूत्र १०३- पंचहिं ठाणेहिं इत्थी पुरिसेण सद्धिं असंवसमाणीवि गब्भं धरेज्जा, तं जहा १. इत्थी दुव्वियडा दुण्णिसण्णा सुक्कपोग्गले अधिट्ठिज्जा। २. सुक्कपोग्गलसंसिढेव से वत्थे अंतो जोणीए अणुपवेसेजा। ३. सई वा से सुक्कपोग्गले अणुपवेसेजा। ४. परो व से सुक्कपोग्गले अणुपवेसेजा। ५. सीओदगवियडेण वा से आयममाणीए सुक्कपोग्गला अणुपवेसेजा-इच्चेतेहिं पंचहिं ठाणेहिं (इत्थी पुरिसेण सद्धिं असंवसमाणीवि गब्भं) धरेजा। पाँच कारणों से स्त्री पुरुष के साथ संवास नहीं करती हुई भी गर्भ को धारण कर सकती है, जैसे १. अनावृत (नग्न) और दुर्निषण्ण (विवृत योनिमुख) रूप से बैठी अर्थात् पुरुष-वीर्य से संसृष्ट स्थान को आक्रान्त कर बैठी हुई स्त्री शुक्र-पुद्गलों को आकर्षित कर लेवे। २. शुक्र-पुद्गलों से संसृष्ट वस्त्र स्त्री की योनि में प्रविष्ट हो जावे। ३. स्वयं ही स्त्री शुक्र-पुद्गलों को यानि में प्रविष्ट करले। ४. दूसरा कोई शुक्र-पुद्गलों को उसकी योनि में प्रविष्ट कर दे। ५. शीतल जल वाले नदी-तालाब आदि में स्नान करती हुई स्त्री की योनि में यदि (बह कर आये) शुक्रपुद्गल प्रवेश कर जावें। इन पाँच कारणों से स्त्री पुरुष के साथ संवास नहीं करती हुई भी गर्भ धारण कर सकती है (१०३)। १०४ - पंचहिं ठाणेहिं इत्थी पुरिसेण सद्धिं संवसमाणीवि गब्भं णो धरेजा, तं जहा १. अप्पत्तजोव्वणा। २. अतिकंतजोव्वणा। ३. जातिवंझा। ४. गेलण्णपुट्ठा। ५. दोमणंसिया इच्छेतेहिं पंचहिं ठाणेहिं (इत्थी पुरिसेण सद्धिं संवसमाणीवि गब्भं) णो धरेजा। पाँच कारणों से स्त्री पुरुष के साथ संवास करती हुई भी गर्भ को धारण नहीं करती, जैसे१. अप्राप्तयौवना— युवावस्था को अप्राप्त, अरजस्क बालिका। २. अतिक्रान्तयौवना- जिसकी युवावस्था बीत गई, ऐसी अरजस्क वृद्धा। ३. जातिबन्ध्या- जन्म से ही मासिक धर्म रहित बाँझ स्त्री। ४. ग्लानस्पृष्टा— रोग से पीड़ित स्त्री। ५. दौर्मनस्यिका— शोकादि से व्याप्त चित्त वाली स्त्री। इन पाँच कारणों से पुरुष के साथ संवास करती हुई भी स्त्री गर्भ को धारण नहीं करती है (१०४)।
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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