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________________ ४६८ स्थानाङ्गसूत्रम् जा सकता है। पाँच कारणों में से प्रारम्भ के तीन कारण तो स्पष्ट हैं। शेष दो का अर्थ इस प्रकार है १. सागारिक-पिण्ड– गृहस्थ श्रावक को सागारिक कहते हैं। जो गृहस्थ साधु के ठहरने के लिए अपना मकान दे, उसे शय्यातर कहते हैं। शय्यातर के घर का भोजन, वस्त्र, पात्रादि लेना साधु के लिए निषिद्ध है, क्योंकि उसके ग्रहण करने पर तीर्थंकरों की आज्ञा का अतिक्रमण, परिचय के कारण अज्ञात-उंछ का अभाव आदि अनेक दोष उत्पन्न होते हैं। २. राजपिण्ड- जिसका विधिवत् राज्याभिषेक किया गया हो, जो सेनापति, मंत्री, पुरोहित, श्रेष्ठी और सार्थवाह इन पाँच पदाधिकारियों के साथ राज्य करता हो, उसे राजा कहते हैं, उसके घर का भोजन राज-पिण्ड कहलाता है। राज-पिण्ड के ग्रहण करने में अनेक दोष उत्पन्न होते हैं। जैसे तीर्थंकरों की आज्ञा का अतिक्रमण, राज्याधिकारियों के आने-जाने के समय होने वाला व्याघात, चोर आदि की आशंका आदि। इनके अतिरिक्त राजाओं का भोजन प्रायः राजस और तामस होता है, ऐसा भोजन करने पर साधु को दर्प, कामोद्रेक आदि भी हो सकता है। इन कारणों से राजपिण्ड के ग्रहण करने का साधु के लिए निषेध किया गया है। राजान्तःपुर-प्रवेश-सूत्र १०२- पंचहि ठाणेहिं समणे णिग्गंथे रायंतेउरमणुपविसमाणे णाइक्कमति, तं जहा १. णगरे सिया सव्वतो समंता गुत्ते गुत्तदुवारे, बहवे समणमाहणा णो संचाएंति भत्ताए वा पाणाए वा णिक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, तेसिं विण्णवणयाए रायंतेउरमणपविसेज्जा। २. पाडिहारियं वा पीढ-फलग-सेजा-संथारगं पच्चप्पिणमाणे रायंतेउरमणुपविसेजा। ३. हयस्स वा गयस्स वा दुट्ठस्स आगच्छमाणस्स भीते रायंतेउरमणुपविसेजा। ४. परो व णं सहसा वा बलसा वा बाहाए गहाय रायंतेउरमणुपवेसेज्जा। ५. बहिया व णं आरामगयं उज्जाणगयं वा रायंतेउरजणो सव्वतो समंता संपरिक्खिवित्ता णं सण्णिवेसिज्जा। इच्चेतेहिं पंचहिं ठाणेहिं समणे णिग्गंथे (रायंतेउरमणुपविसमाणे) णातिक्कमइ। पांच कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ राजा के अन्तःपुर (रणवास) में प्रवेश करता हुआ तीर्थंकरों की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है, जैसे १. यदि नगर सर्व ओर से परकोटे से घिरा हो, उसके द्वार बन्द कर दिये गये हों, बहुत-से श्रमण-माहन भक्त-पान के लिए नगर से बाहर न निकल सकें, या प्रवेश न कर सकें, तब उनका प्रयोजन बतलाने के लिए राजा के अन्तःपुर में प्रवेश कर सकता है। २. प्रातिहारिक (वापिस करने को कहकर लाये गये) पीठ, फलक, शय्या, संस्तारक को वापिस देने के लिए राजा के अन्तःपुर में प्रवेश कर सकता है। ३. दुष्ट घोड़ या हाथी के सामने आने पर भयभीत साधु राजा के अन्तःपुर में प्रवेश कर सकता है। ४. कोई अन्य व्यक्ति सहसा बल-पूर्वक बाहु पकड़कर ले जाये, तो राजा के अन्तःपुर में प्रवेश कर सकता
SR No.003440
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthananga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Dictionary, & agam_sthanang
File Size16 MB
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